भूतनाथ | २२ |
आज भूतनाथ ने उसे यह भी बता दिया था कि जिस समय प्रभाकरसिंह हमारे साथ से गायव हुए है उस समय उनकी पोशाक फलाने ढग की थी तथा उनके पास अमुक अमुक हर्वे थे । इन सब कारणो से भोलासिंह को उनके पहिचानने में किसी तरह की दिक्कत न हुई और वह उन्हें ऐसी अवस्था में पड़े हुए देखते ही चौंक पडा। वह उनके पास बैठ गया और गौर से देखने लगा कि क्या उन्हें किसी तरह की चोट पाई है या कोई आदमी जान से मार कर छोड गया है । किसी तरह की चोट का पता तो न लगा मगर इतना मालूम हो गया कि मरे नहीं है बल्कि वेहोश पड़े हैं।
भोलासिंह ने अपने ऐयारी के वटुए मे से लखलखा निकाला और सुंघाने लगा । थोडी ही देर में प्रभाकरसिंह होश में भा गए और उन्होने अपने सामने एक देहाती ब्राह्मण को बैठे देखा ।
प्रभा० । पाप कौन है ? कृपा कर अपना परिचय दीजिए । मैं आपका वडा ही कृतज्ञ हू क्योकि प्राज नि सन्देह आपने मेरी जान बचाई।
भोला० । मैं एक गरीव देहाती ब्राह्मण हूँ, इस राह से जा रहा था कि यकायक प्रापको इस तरह पड़े हुए देखा, फिर जो कुछ बन सका किया।
प्रभा० । ( सिर हिला कर ) नही कदापि नही, आप ब्राह्मण भले ही हो परन्तु देहाती और गरीव नही हो सकते, आप जरूर कोई ऐयार है।
भोला० ! यह शक प्रापको कैसे हुमा ?
प्रभा० । यद्यपि मैं ऐयारी नही जानता परन्तु ऐसे मौके पर आपको पहिचान लेना कोई कठिन काम न था, क्योकि अापने बहुत उम्दा लखलखा सुधाकर मेरो वेहोशी दूर की है जिसकी खुशबू अभी तक मेरे दिमाग में गूज रही है । क्या कोई प्रादमी जो ऐयारी नहीं जानता हो ऐसा लखलखा बना सस्ता है ! माप ही बताइए?
भोला० । प्रापका कहना ठीक है मगर मैं
प्रभा० । ( वात काट कर ) नही नहीं, इसमें कुछ मोचने और घात बनाने की जरूरत नहीं है, मैं आपसे मिल कर वडा प्रसन्न हुया क्योकि मुझे