के साथ अपने आने का सबब भी प्रभाकरसिंह ने बयान किया जिसे सुन इन्द्रदेव की पाखें डबहवा आई और एकान्त होने पर उन दोनो में इस तरह बातचीत होने लगी, इस बातचीत में गुलाबसिंह शरीक नही थे।
इन्द्र० । प्रभाकरसिंह, तुम्हें यह सुन कर बहुत दुख होगा कि तुम्हारी स्त्री इन्दुमति हमारे यहा नहीं है तथा जमना और सरस्वती का भी कुछ पता नही लगता कि वे दोनों कहां गायब हो गई । अफसोस, उन दोनो ने मेरी शिक्षा पर कुछ ध्यान नहीं दिया और अपनी बेवकूफी से अपने को थोडे ही दिनों में जाहिर कर दिया, अगर वे मेरी आज्ञा अनुसार अपने को छिपाये रहती और धीरे धीरे कार्य करती तो धोखा न उठाती ।
प्रभा०। (दुखित चित्त से ) निसन्देह ऐसा ही है, उस घाटी में पहिले जब मुझसे मुलाकात हुई थो तब उन्होने कहा था कि ऐसे स्थान में रह कर भी हम लोग अपने को हर वक्त छिपाये रहती है, यहा तक कि अपनी लौंडियो को भी अपनी असली सूरत नहीं दिखाती.
इन्द्र०। (वात काट के) वेशक ऐसी ही बात थी और मैंने ऐसा ही प्रबन्ध कर दिया था कि उनके साथ रहने वालो लौडियो को भी इस बात का ज्ञान न था कि ये दोनो वास्तव मे जमना सरस्वती हैं । वे सब उन दोनो को कला और बिमला ही जानती थी मगर इस बात को जमना ने बहुत जल्द चौपट कर दिया और लोडियो पर भरोसा करके शीघ्र ही अपने को प्रगट कर दिया । मगर लोहयों को यह भेद मालूम न हो गया होता तो भूतनाथ को समझ में खाक न पाना कि वे दोनो कौन है और क्या चाहती है।
प्रभा० । आपका कहना बहुत ठीक है।
इन्द्र० । बडो ने सच कहा है कि स्त्रियों के विचार में स्थिरता नही होती और किसी भेद को ज्यादे दिनो तक छिपा नहीं सकती,कइयो का कपन तो यह है कि स्त्रियो को बुद्धि प्रलय करने वालो होती है, ओर मै भी इसी बात का पक्षपाती हूँ।
प्रभा० । अफसोस करने के सिवाय भोर में क्या कहू, इन वखेडों में