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भूतनाथ १२ ~ बिमला० । भोलासिंह को सूरत बन कर दलीपशाह जव से गए हैं तव से पुन मुझसे नहीं मिले । प्रभा० । क्या हुपा अगर नहीं मिले तो, इन्द्रदेवजी ने मुझसे कहा है कि वे कल तक यहा भावेंगे। विमला० । मालूम होता है कि आपने इन्द्रदेवजी से अपने बारे में सब बातें तै कर ली है। प्रभा० । हाँ जो कुछ मुझे करना है कम से कम उसके में तो मैंने सभी बातें कर ली हैं । विमला० । तो आप जरूर नोगत जायगे? प्रभा० । जरूर । विमला० । दूसरे ढग से बदला नही लेंगे? प्रभा० । नही इन्दु । तव तक मैं कहां रहू गी? प्रभा० । तुम्हारे बारे में यह निश्चय हुमा है कि तुम्हें मैं तब तक के निए जमानिया में राजा साहब के यहा रख दू, क्योंकि इस समय वे ही मेरे वडे और बुजुर्ग जो कुछ हैं सो है । विमला०। (चौंक कर) मगर ऐसा करने से तो मेरा भेद खुल जायगा ! प्रमा० । तुम्हार भेद क्यों खुलेगा ? मैं इन्द्रदेवजी से वादा कर चुका हू कि इन सब बातो का वहा कभी जिक्र तक न करूगा। मेरी जुबानी तुम्हारा हाल उन्हें कभी मालूम न होगा, इन्दु को भी मैं ऐसा ही करने के लिए ताकीद करू गा मोर तुम भी अच्छी तरह समझा देना । क्या मैं नही समझता कि तुम्हारा जाने से प्रापुस हो जायगो भोर वेदाग दोस्ती तथा मुहब्बत में वट्टा लग जायगा । विमला० । अगर भूतनाथ किसी तरह इन्दु को वहीं देख ले तो क्या होगा, क्योकि वह प्रकमर जमानिया जाया करता है ? प्रभा । तब क्या होगा ? भूतनाथ अपने मुह से इम सब बातो का भेद खुल में कई प्रादमियों को खटपट