६२ तनाय बिमला० । भोलासिंह को सूरत बन कर दलीपशाह जब से गए हैं व से पुन मुझसे नही मिले। प्रभा० । क्या हुअा अगर नहीं मिले तो, इन्द्रदेवजी ने मुझसे कहा है क वे कल तक यहा भावेंगे। विमला० । मालूम होता है कि आपने इन्द्रदेवजी से अपने बारे में सब बातें ते कर ली है। प्रमा० । हाँ जो कुछ मुझे करना है कम से कम उसके विषय में तो मैने सभी बातें तै कर ली हैं । बिमला० । तो आप जरूर नौगढ़ जायगे? प्रभा० । जरूर । विमला० । दूसरे ढ ग से बदला नही लेंगे ? प्रभा० । नही इन्दु । तब तक मैं कहा रहू गी? प्रभा० । तुम्हारे बारे में यह निश्चय हुअा है कि तुम्हें मैं तब तक के निए जमानिया में राजा साहब के यहा रख दू, क्योकि इस समय वे ही मेरे वडे और बुजुर्ग जो कुछ है सो हैं । विमला। (चौंक कर) मगर ऐसा करने से तो मेरा भेद खुल जायगा ! प्रमा० । तुम्हार भेद क्यों खुलेगा ? मैं इन्द्रदेवजो से वादा कर चुका है कि इन सब बातो का वहा कभी जिक्र तक न करूगा । मेरो जुबानी तुम्हारा हाल उन्हें कभी मालूम न होगा, इन्दु को भी मैं ऐसा ही करने के लिए ताकीद करू गा पोर तुम भी अच्छी तरह समझा देना । क्या मैं नहीं समझता कि तुम्हारा भेद खुल जाने से आपुस में कई प्रादमियों को खटपट हो जायगो और वेदाग दोस्ती तथा मुहब्बत में बट्टा लग जायगा । बिमला० ० । अगर भूतनाथ किसी तरह इन्दु को वहाँ देख ले तो क्या होगा, क्योकि वह प्रकमर जमानिया जाया करता है? प्रभा० । तर क्या होगा ? भूतनाथ अपने मुह से इस सब बातो का
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