भूतनाथ ८२ भूतनाप की कमर में वही भनूठी तलवार यी जो उसने प्रमाकरसिंह से पाई थी, इस तलवार को वह बहुत ही प्यार करता था और उसे अपनी फतहमन्दी का सितारा समझता था। उसके मादमियो को इस बात को कुछ भी खबर न थी कि इस तलवार में कौन सा गुण है अस्तु लाचार हो वे लोग भी खजर मौर तलवारें खींच मुकाबला करने के लिए तैयार हो गये। भूतनाथ अकेला ही सभों से लड़ने के लिए तैयार हो गया बल्कि बहुत देर तक लहा। भूतनाथ के वदन पर छोटे छोटे कई जरूम लगे मगर भत- नाथ के हाथ को तलवार का जिसको जरा सा भी चरका लगा वह बेकार हो गया और तुरन्त वेहोश होकर जमीन पर गिर गया । यह देख उन लोगो को वहा ही ताज्जुब हो रहा था । थोड़ी ही देर में कुल मादमी जख्मी होने के कारण वेहोश होकर जमीन पर गिर पडे पोर भूतनाथ ने सभी को मुश्के बांध कर एक गुफा में कैद कर दिया। इसके बाद भूतनाथ घाटी के बाहर निकला और मालासिंह की खोज मै चारों तरफ घूमने लगा मगर तमाम दिन बीत जाने पर भी भोलासिंह का कही पता न लगा। सन्ध्या होने पर भतनाथ पुन लौट कर अपनी घाटी में पाया और यह देखने के लिए उस गुफा के अन्दर गया जिसमें अपने शागिर्दो को कैद किया चा कि उन सभों की वेहोशी अभी दूर हुई या नहीं,मगर अफसोस भूननाथ ने वह तमाशा देखा जो कभी उसके खयाल में भी नहीं आ सकता था,प्रर्थात् उसके केदो शागिर्दो में से वहाँ एक भी मौजूद न था, हा उनके बदले वह सब सामान वहा जमोन पर जमा दिखाई दे रहा था जिससे उनके हाथ पैर वेकार कर दिये गए थे या उनको मुश्क बापी गई थी। अपने शागिर्दो को फैदखाने में न देख कर भूतनाय को वडा ही प्रश्चर्य हुमा घोर वह सोचने लगा कि 'ये सब कैदखाने में से निकल कर किस तरह भाग गये । मैं इनके हाथ पैर वडो मजबूती के साथ वाघ गया था जो विना किसी की मदद के किसी तरह भी खुल नहीं सकते थे फिर ये लोग क्योंकर ,
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