DO भूतनाथ तरफ दौसाया और कइयों को उस सुरग के इर्द गिर्द घूम कर टोह लगाने के लिये मुकर्रर किया जिसकी राह से कला ने उसे खोह के बाहर किया था। मूतनाव को अपने शागिर्द भोलासिंह की बड़ी हो फिक्र थी क्योकि वह मुद्दत से गायब था और हजार कोशिश करने पर भी उसका कुछ पता नहीं लगता था । वह भूतनाथ का बहुत ही विश्वासो शागिर्द प और भूतनाथ उसे दिल से मानता था। एक दिन दोपहर के समय भूतनाथ अपनी घाटी से बाहर निकला मोर सुरग के मुहाने पर वाहर की तरफ पेडों की ठण्ढो छाया में टहलने लगा। सम्भव है कि वह अपने किसी शागिर्द का इन्तजार कर रहा हो । उसी समय से प्राते हुए भोलासिंह पर उसकी निगाह पड़ी। वह बडी खुशो के साथ भोलासिंह की तरफ वढा और मोनासिंह भी भूतनाथ को देख कर दौडता हुप्रा पाया और उसके पैरो पर गिर पड़ा। भूतनाथ ने भोलासिंह को गले सेलगा लिया मोर पूछा, "इतने दिन तक तुम कहा थे ? मुझे तुम्हारे लिए वडी ही फिक्र थी पौर दिन रात खुटके में जी लगा रहता था !" भोला । गुरुजी, मैं तो वही माफत में फस गया था, ईश्वर ही ने मुझे बचाया नही तो मैं विल्कुल ही निराश हो चुका था। २ त० । क्या तुम्हें किसी दुश्मन ने गिरफ्तार कर लिया था ? भोला० । जी हां। भूत० । किसने? 1 भोला० । दो औरतो ने, जिन्हें मैं बिल्कुल ही नही पहिचानता ! भूत । मालम होता है कि तुम्हें भी जमना और सरस्वती ने गिरफ्तार कर लिया? भोला० ० । जमना और सरस्वती कौन ? भूत० ० । हमारे प्यारे दोस्त और मालिक दयाराम की स्त्रियां, जिनका जिक्र में कई दफे तुमसे कर चुका है। भोला ! हा हां, अब मुझे याद भाया, मगर मापने तो कहा था कि
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