। ६२ भूतनाथ प्रभा० । ( चारो तरफ देख कर ) क्या प्रभो तक मेरी गिनती कैदियों ही में है ? मैं पुन बेहोश करके इस घाटी में क्यो लाया गया और तुम क्यों नही बताते कि इस तरह दुख देने से तुम्हारा मतलब क्या है ? भूत । प्रभाकरसिंह, तुम खूब जानते हो कि ऐयारों को जरा जरा से काम के लिये बहे बडे नाजुक और अमीर भादमियों को तकलीफ देनी पहती है। मैं सच कहता हूं कि तुमसे मुझे किसी तरह को दुश्मनी नही थी, बल्कि में हर तरह से तुम्हारी मदद के लिये तैयार हो गया था, मगर तुम धोखा देकर अपना ढग न बदलते तो देखते कि मैं किस खूबो और खूबसूरती के साथ तुम्हारे दुश्मनों से तुम्हारा बदला लेता और तुम्हें हर तरह से वेफिक कर देता, मगर अफसोस तुमने मेरे दुश्मनो से मिल कर मुझे धोखा दिया और गुलावसिंह को भी जो मेरा दोस्त था बहका दिया ! प्रमा० । मैंने तुम्हारे किस दुश्मन से मिल कर तुम्हारा क्या नुकसान किया सो साफ साफ क्यो नही कहते ? भूत० । क्या तुमनही जानते जो साफ साफ कहने की जरूरत है ? जमना और सरस्वती ने मुझे तकलीफ देने के लिए ही अवतार लिया है और तुम उनके पक्षपाती बन गये हो । वे तो भला भौरत की जात है नासमझ कह- लाती है, पर तुम्ही ने उनका भ्रम क्यों नही दूर कर दिया कि भूतनाथ ने दयाराम को कदापि न मारा होगा क्योकि वह उनके साथ मुहब्बत रखता था और उनका दोस्त था। प्रमा० । (हस कर ) तुमको भी तो वे गिरफ्तार करके उस घाटी में ले गई थीं, फिर तुम्हीं ने क्यो नहीं उसका भ्रम दूर कर दिया ? तुम ऐयार पहलाते हो, हर तरह से वात वनाना जानते हो। भूत । मुझे तो कसूरवार ही समझती है, फिर भला मेरी बात क्यों मानने लगीं? इसी तरह मैं भी तो उनका रिश्तेदार ठहरा, मैं उनकी इच्छा के विरुद्ध क्यों करने लगा ? तुम जानो और चे जानें, मुझे इन झगड़ों से प्रमा. 1
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