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४८ मूतनाथ रहे हैं और उन्हें मुझसे किसी तरह का फायदा भी नजर नहीं आता, तथापि वह अभी तक उन पर अच्छी तरह भरोसा करने का साहस नही रखता था । यह बात चाहे ऐयारी नियम के अनुसार कहिये चाहे भूतनाथ को प्रकृति के कारण समझिये हा इतना जरूर था कि बाबाजी की मेहर- वानियो से भूसनाथ दवा जाता था और सोचता था कि 'यदि इन्होंने कोई खजाना मुझे दे दिया जैसा कि कह चुके हैं, तो मुझे मजबूर होकर इन पर भरोसा करना पड़ेगा और समझना कि पडेगा ये वास्तव में मुझसे स्नेह रखते है भोर मेरे कोई अपने ही हैं। साधू महाशय की प्राज्ञानुसार भूतनाथ ने उन्हें वे सब गुफायें दिखाई जिनमें वह अपने साथियों के साथ रहता था और बताया कि इस ढग पर इस स्थान को हम लोग वरतते हैं, इसके बाद साधू महाशय उसे अपने साथ लिये पूरव तरफ की चट्टान पर चले गये जिधर छोटी बडी कई गुफाए थी। साघू०। देखो भूतनाथ, मैं जब यहां रहता था तो इसी तरफ की गुफामों में गुजारा करता था और इस पडोस वालो घाटी में जिसे तुम अपने दुश्मों का स्थान बता रहे हो, इन्द्रदेव रहता था जिसे तुम पहिचानते होमोगे। भूत० । जी हाँ, मैं खूब जानता हूं। साधू० । उन दिनों इन्द्रदेष का दिमाग बहुत ही बढ़ा चढ़ा था और वह मुझसे दुश्मनी रखता था, क्योंकि जिस तरह यह एक तिलिस्म का दारोगा है उसी तरह मैं भी एक तिलिस्म का दारोगा हू, मस्तु वह चाहता था कि मेरे कब्जे में जो तिलिस्म है उसका भेद जान ले और उस पर कना कर ले, मगर वह कुछ भी न कर सका मोर कई साल तक यहां रहने पर भी वह न जान सका कि फलाना ब्रह्मचारी इस पड़ोस वाली घाटी में रहता है । इस समय मैं तुमसे ज्यादे न कहूंगा और न ज्यादे देर तक रहने को मुझे फुरसत हो है, तुम्हें वहा हो ताज्जुब होगा जब मैं अपना परिचय तुम्हें दूगा और उस समय तुम भी मुझसे उतनी ही मुहब्बत करोगे जितना इस समय मैं तुमसे करता हूँ।