१३ | पहिला हिस्सा |
आना उन्हें मालूम हो गया।"
इतना कह कर गुलावसिंह ने भी कुछ अजीव ढग को सीटी बजाई अर्थात् उस सीटी का जवाब दिया ।
प्रभा० । भला प्रपने इस अनूठे दोस्त का नाम तो बता दो ।
गुलाव० । आज कल इन्होने अपना नाम भूतनाथ रख छोडा है ।
प्रभा० । (कुछ सोच कर) यह नाम तो कई दफे मेरे कानो में पड चुका है और एक दफे ऐसा भी सुन चुका है कि इस नाम का एक यादमी वडा ही भयानक है जिसके रहन सहन का किसी को कुछ पता नहीं लगता।
गुलाब० । ठीक है, आपने ऐसा ही सुना होगा, परन्तु वह केवल दुष्टो और पापियो के लिए भयानक है ...
गुलाबसिंह इससे ज्यादे कुछ कहने न परया या कि सीटी बजाने वाला अर्थात् भूतनाथ वहां आ पहुँचा। प्रभाकरसिंह को सलाम करने बाद भूतनाय गुलावसिह के गले मिला और इसके बाद चारो आदमी पत्थर की चट्टानो पर बैठ कर इस तरह बातचीत करने लगे-
गुलाब० । (भूतनाथ से) यहां यकायक श्रापका इस तरह प्रा पहुंचना बडे पाश्चर्य की बात है !!
भूतनाथ० । प्राश्चर्य काहे को है । यहाँ तो मेरा ठिकाना ही ठहरा, या यो कहिये कि यह दिन रात का मेरा रास्ता ही है।
गुलाब० । ठीक है, मगर फिर भी आपका घर यहां से प्राधे घण्टे को दूरी पर होगा ऐती अवस्था में क्या जरूरी है कि आप दिन रात इनी पहाडी पर दिखाई दें?
भूत० । (हस कर) हां सो तो सच है, मगर अाप जो यहां आ पहुंचे तो फिर क्या किया जाय, अाखिर मुलाकात करना भी तो जरूरा टहरा । गुलाव० । (हसी के साथ) वस तो सीधे यही क्यो नहीं कहते कि मेरा यहां प्राना आपको मालूम हो गया।
भूत० । वेशक आपका आना मुझे मालूम हो गया बल्कि और भी कई