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दूसरा भाय लिया। क्या दयाराम की दोनों स्त्रियां तो यहा नही पा पहुंची जो पड़ोस में रहती हैं। अगर ऐसा हो भी तो यह कोई पाश्चर्य की बात नहीं है, क्योकि बगल वाली घाटी जिसमें वे दोनो रहती है कोई तिलिस्म मालूम पड़ती है और यह घाटी उससे कुछ सम्बन्ध रखती हो तो भाश्चर्य ही पया है। में नहीचाहता था कि उन दोनो को सताऊं या किसी तरह को तकलीफदूं, मगर दोस्तो पोर शागिर्दो को छुडाने के लिए अब मुझे सभी कुछ करना पडेगा। चौथा बयान गुलाबसिंह को जब प्रांख खुली तो रात बोत चुकी थी और सुबह की सुफेदी में पूरब तरफ लालिमा दिखाई देने लग गई थी। वह घवहा कर उठ बैठा और इधर उधर देखने लगा । जब प्रभाकरसिंह को वहाँ न पाया सब बोल ठा, "वेशक में धोखा खा गया। वह मुसाफिर न था बल्कि कोई ऐयार था जिसने लोटे में किसी तरह की दवा लगा दी होगी। क्या में कह सकता हूं कि प्रभाकरसिंह को वही उठा ले गया होगा?" इतना कह वह जगत के नीचे उतरा और घूम घूम कर प्रभाकरसिंह की तलाश करने लगा। जब वे न मिले तो तरह तरह की बाते मन में सोचता हुमा मागे की तरफ बढ़ा- "बेशक वह कोई ऐयार था जो प्रभाकरसिंह को उठा कर ले गया। ताज्जुब नहीं कि वह भूतनाप हो । यद्यपि मुझे उससे ऐसो पाया न यो परन्तु पाज फल वह जमना भोर सरस्वती के ख्याल से प्रभाकरसिंह को भी अपना दुश्मन समझने लग गया है। यह भी फिसो फो क्या उम्मीद थी कि जमना मोर सरस्वती जीती होंगी। खैर मुझे इस समय प्रभाकरसिंह के लिए कुछ रन्दोबस्त करना चाहिये, बेहतर होगा यदि मै स्वयम् भूतनाप के पास चला जाऊं मोर उससे प्रभाकरसिंह को मांग लू, मगर नहीं यद्यपि वह मेरा दोस्त है परन्तु इस समय वह इस दोस्ती पर कुछ भी ध्यान न देगा मगर उसे ऐसा हो खयाल होता तो प्रभाकरसिंह को ले जाता हो यो ? मुझे भू० २-३