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भूसनाथ २८ गई और मैं बेवकूफ बन गया । में यह भी खूब समझता हू कि दलीपशाह से मुलाकात करने की तुम्हें कोई जरूरत न थी, वह केवल बहाना था और न मव तुम मेरे साथ दलीपशाह के पास जा ही सकती हो । अस्तु कोई चिन्ता नही, तुम मेरे हाथ से निकल गई और मैं तुम्हारे पजे से छू ! गया। अच्छा अब मैं जाता मगर कहे जाता है कि तुम लोग व्यर्थ ही मुझसे दुश्मनी करती हो । दयारामजी के विषय में जो कुछ तुम लोगों ने सुना है या जो कुछ तुम लोगों का खयाल है वह बिल्कुल झूठ है, वह मेरे सच्चे प्रेमी थे और मैं अभी तक उनके लिए रो रहा है। यदि जमना और सरस्वती वास्तव में जीती है भोर तुम लोग उनके साथ रहती हो तो जाकर कह देना कि गदाधरसिंह तुम लोगो के साथ दुश्मनी कदापि न करेगा, यद्यपि तुम्हारा हाल जानने के लिए वह तुम्हारे पादमियों को दुख दे मोर सतावे तो हो सकता है मगर यह तुम दोनों को कदापि दु ख न देगा । तुम यदि इच्छा हो तो गदाधरसिंह को सता लो, उसे तुम्हारे लिए जान दे देने में भी कुछ उज्ज़ न होगा। इतना कह कर मूतनाथ वहा से पलट पडा और देखते देखते नजरों से गायब हो गया। गुलावसिंह को बाहर ही छोड कर प्रभाकरसिंह कला के साथ घाटी के अन्दर चले गये और गुलावसिंह से कह गये कि तुम इसी जगह ठहर कर मेरा इन्तजार करो, मैं इन्दुमति तथा विमला से मिल कर पाता हूँ तो चुनार की तरफ चलू गा क्योंकि जब तक शिवदत्त से वदला न ले लूंगा तव तक मेरा मन स्थिर न होगा। सध्या हो चुकी थी जब प्रभाकरसिंह लोट कर गुलाबसिंह के पास पाएमौर दोनो प्रादमी घोरे धोरे वात चीत करते हुए चुनारगढ़ की तरफ रवाना हुए। इन दोनो को इस बात को कुछ भी खबर नहीं है कि भूतनाथ इनका पोछा किये चला पा रहा है मौर चाहता है कि इन दोनों को किसी तरह 'पहिचान ले । इन दोनो के खयाल से भूतनाथ उसी समय कला के सामने