देख चुके थे, हाँ कला ने प्रभाकरसिंह को नही पहिचाना जो इस समय भी सुन्दर सिपाहियाना ठाठ में सजे हुए थे।
कला को इस जगह ऐसी अवस्था में देखकर उन्हें आश्चर्य हुआ और ये उससे कुछ पूछा ही चाहते थे कि उनकी निगाह गदाधरसिंह पर जा पडी जो चश्मे के उस पार एक पत्थर को चट्टान पर खडा इन लोगो की तरफ देख रहा था।
प्रभाकरसिंह ने इस ढग पर अपनी सूरत बदली हुई थी कि उन्हे यकायक पहिचानना बड़ा कठिन था मगर एक बंधे हुए इशारे से उन्होने कला पर अपने को प्रगट कर दिया और यह बतला दिया कि जो आदमी मेरे साथ है यह मेरा सच्चा खैरखाह गुलाबसिंह है।
गुलाबसिंह का हाल कला को मालूम था क्योकि वह उसकी तारीफ इन्दुमति से सुन चुकी थी और जानती थी कि ये प्रभाकरसिंह के विश्वासपात्र हैं इसलिए इनसे कोई बात छिपाने की जरूरत नहीं है अस्तु पूछने पर उसने अपने साथ वाली औरतों को अलग करके सब हाल अपना और भूतनाथ का साफ साफ वयान कर दिया जिसे सुनते ही प्रभाकरसिंह और गुलाबसिंह हस पडे।
प्रभाकर०। वास्तव में तुम वेतरह इसके हाथ फस गई थी मगर खूब ही चालाकी से अपने को बचाया!
गुलाब०। (प्रभाकरसिंह की तरफ देख के) यद्यपि गदाधरसिंह इनका कसूरवार है और आजकल उसने अजीब तरह का ढग पकड रक्खा है तथापि मैं कह सकता हूँ कि गदाधरसिंह ने इन्हें पहिचाना नहीं, अगर पहिचान लेता तो कदापि इनके साथ वेपदवी का बर्ताव न करता।
कला०। (गुलाबसिंह से)आप जो चाहे कहें क्योंकि वह आपका दोस्त है मगर हम लोगो को उस पर कुछ भी विश्वास नही है। (प्रभाकरसिंह से) मालूम होता है कि हमलोगों का हाल आपने इनसे कह दिया है ?
प्रभाकर०। हाँ वेशक ऐसा ही है, मगर तुम लोगों को इन पर विश्वास करना चाहिए क्योंकि ये मेरे सच्चे सहायक हितैषी और दोस्त है।