यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
भूतनाथ
१६
 


सकती और बिना मेरी मदद के तुम घाटी के बाहर भी नहीं जा सकते।

गदा०। (सोच कर) अगर ऐसा ही है तो तुम मेरो नातेदार होकर यहाँँ क्यों रहती हो?

कला०। यहा पर मैं इन सब बातो का कुछ भी जवाब न दूँँगी।

कला की बातें सुन कर गदाधरसिंह सोच और तरद्ददुद में पड़ गया। वह यहाँँ का भेद जानने के लिए अवश्य ही कला को तकलीफ देता या गुस्से मे आकर शायद मार ही डालता मगर कला की बातो ने उसे उलझन में डाल दिया और यह सोच में पड़ गया कि अब क्या करना चाहिए। वह जानता था बल्कि उसे विश्वास था कि बिना किसी की मदद के वह इस घाटी के बाहर नहीं निकल सकता और यहाँँ फँसे रहना भी उसके लिये अच्छा नही चाहे वह किसी तरह को ऐयारी करके कितना ही उपद्रव क्यों न मचा ले, अतएव बाहर निकल जाना वह बहुत पसन्द करता था और समझता या कि इत्तिफाक ही ने इस समय उसे एक मदद दिला दी है और अब इससे काम न लेना निरी बेवकूफी है मगर कला की बातोंं ने उसे चक्कर में डाल दिया था। यद्यपि वह दलीपशाह* का पता जानता था मगर कई कारणो से उसके पास या सामने जाना अथवा कला को ले जाना पसन्द नहीं करता था, इधर कला से उसकी इच्छानुसार बात करने को भी उसे सख्त जरूरत थी क्योकि उसे इस बात का शक हो रहा था कि अगर कला से दलीपशाह के पास ले जाने का वादा न करूगा तो शायद यह मुझे इस खोह के बाहर भी न ले जायगी। वह कला को धोखा देने और कोरा वादा करने के लिये तैयार था मगर वह चाहता था कि कला मुझसे वादा पुरा करने के लिये कसम न खिलावे, क्योंकि असली सूरत में कसम खाकर मुह फेर लेने की आदत अभी तक उसमें नहीं पड़ी थी और वह अपने को बहादुर समझता था।

गदाधरसिंह के दिल में ये बातें भी पैदा हो रही थी कि इस घाटी के

  • यह नाम चन्द्रकान्ता सन्तति में आ चुका है।