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पहिला हिस्सा

रहने पर भी उसने तुम्हें और मुझे नही पहिचाना । मुझे इस समय कुछ भी नहीं सूझता कि तुम्हें क्या नसीहत करू और किस तरह उस दुष्ट का नमक खाने से तुम्हें रोकू।

गुलाव० । (कुछ सोच कर) खैर कोई चिन्ता नही, जो होगा देखा जायगा । इस समय मैं अापका साथ कदापि न छोडगा और इस मुसीबत में नापको अकेले भी न रहने दूगा । जो कुछ नाप पर बीतेगी उसे मै भी सहू गा । (अपने साथियो से) भाईयो ! अव तुम लोग जहाँ चाहे जानो और जो मुनासिव समझो करो, मैं तो अब इनके दुख सुख का साथी बनता हू। यद्यपि ये (नौजवान) उम्र मे मुझसे बहुत छोटे है परन्तु मै इन्हें अपना पिता समझता हू और पिता ही की तरह इन्हें मानता हू, अस्तु जो कुछ पुत्र का धर्म है मै उसे निवाहूगा । मै इनको गिरफ्तार करने की आज्ञा पाकर बहुत प्रसन्न था और यही सोचे हुए था कि इस बहाने से इन्हें ढूंढ निकालूगा और सामना होने पर इनको सेवा स्वीकार करूगा।

गुलाबसिंह की वातें सुन कर उसके साथियो ने जवाब दिया, "ठीक है, जो कुछ उचित था अापने किया परन्तु आप हम लोगो का तिरस्कार क्यो कर रहे हैं ? क्या हम लोग आपकी सेवा करने योग्य नहीं है ? या हम लोगो को श्राप बेईमान समझते है ?"

गुलाव० । नही नहीं, ऐसा कदापि नहीं है, मगर बात यह है कि जो कोई मुसीबत में पटा हो उसका साथ देने वाले को भी मुसीवत झेलनी पड़ती है, अस्तु मुझ पर तो जो कुछ वीतेगा उसे झेल लू गा, तुम लोगो को जान बुझ कर क्यो मसीवत में डाल ! इसी स्याल से कहता ह कि जहा जो मे प्रावे जानो और जो कुछ मुनासिब समझो करो।

गुलाबसिंह के साथी० । नहीं नहीं, ऐसा कदापि न होगा और हम लोग आपका साथ पानी न छोडे गे । पाप याज्ञा दें कि अब हम लोग क्या करें।

गुलाब० । (कुछ सोच कर) अच्छा, अगर तुम लोग हमारा साथ देना हो चाहते हो तो जो कुछ हम कहते है उसे करो। यहां से इसी समय चले