इस अद्भुत तमचे में बेहोशी की बारूद भरी जाती थी और इसका तेज तथा जल्द बेहोश कर देने वाला धूआँँ छूटने के साथ ही तेजी से कई बिगहे तक फैल कर लोगो को बेहोश कर देता था। यहाँँ पर फैलने के लिए विशेष जगह तो थी नही इसलिये उस धूएँँ के गुब्बार ने गदाधरसिंह को चारो तरफ से घेर कर एक तरह का अन्धकार कर दिया।
"गदाधरसिंह धूएँँ के असर से बेहोश हो ही जायगा।" यह सोच कर विमला कला और इन्दुमति तोनो बहिनें भाग कर नीचे उतर जाने के लिये उठी और नाक दवाये हुए सीढ़ी की तरफ बढ़ गई।
गदाधरसिंह वेशक इस धूएँँ के असर से बेहोश हो जाता मगर उसने पहिले ही से अपने बचाव का बन्दोबस्त कर लिया था अर्थात् ऐसी दवा खा ली थी कि कई घण्टे तक उस पर बेहोशी का असर नही हो सकता था तथापि उस धूएँँ ने एक दफे उसका सर घुमा दिया।
वे तीनों बहिनें वहाँँ से भागी तो सही मगर अफसोस, विमला और इन्दु तो नीचे उतर गई परन्तु कला को फुर्ती से गदाधरसिंह ने पकड़ कर कब्जे में कर लिया और यह हाल विमला को नीचे उतर कर और कई कमरों में घूम फिर कर छिप जाने के बाद मालूम हुआ जब चित्त स्थिर हो जाने पर उसने कला को अपने साथ न देखा।
दिन पहर भर से कुछ ज्यादे चढ़ चुका है। यद्यापि अभी दोपहर होने में बहुत देर है तो भी धुप की गर्मी इस तरह बढ रही है कि अभी से पहाड़ के पत्थर गर्म हो रहे है और उन पर पैर रखने की इच्छा नही होती दोपहर दिन चढ जाने के बाद यदि ये पत्थर आग के अगारों का मुकाबला करने लग जाय तो आश्चर्य ही क्या है।
पहाड के ऊपरी हिस्से पर एक छोटा सा मैदान है जिसका फैलाव लग-
भग डेढ या दो बिगहे का होगा। इसके ऊपर की तरफ सिर उठा कर