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भूतनाथ
 


विमला०। (उस आदमी से) तुम कौन हो

आदमी०। गदाधरसिंह।

विमला०। (निडर रह कर) तुमने वही चालाकी से अपने को कैद से छुडा लिया।

गदाधर०। बात तो ऐसी ही है।

विमला०। मगर तुम भाग कर इस घाटी के बाहर नहीं जा सकते।

गदाधर०। शायद ऐसा ही हो, मगर मुझे भागने की जरूरत ही क्या है?

विमला०। क्यो, अपनी जान बचाने के लिये तुम जरूर भागना चाहते होगे?

गदाधर०। नही , मुझे अपनी जान का यहां कोई खौफ नहीं है क्योकि तुम्हारी एक नमकहराम लौंडी ने मुझे बता दिया है कि तुम मेरे प्यारे दोस्त दयाराम की स्त्री हो..

विमला०। (बात काट कर) जिस प्यारे दोस्त को तुमने अपने हाथ से हलाल किया!

गदाधर०। नहीं नहींं कदापि नहीं। जिसने यह बात तुमसे कही है वह बिल्कुल झुंठा हो उसने तुम लोगो को धोखे में डाल दिया है, यह समझाने और विश्वास दिलाने के लिए मैं यहाँ अटक गया हूँ और भागना पसन्द नहीं करता । मुझे विश्वास था कि तुम दोनो वाहनों का देहान्त हो चुका है जैसा कि दुनिया में प्रसिद्ध किया गया है, मगर मब तुम दोनों का हाल जान कर भी क्या मैं भागने की इच्छा करुँगा ? नही , क्योंकि तुम दोनो को अब भी मैं उसी निगाह से देखता हूँँ जैसे अपने प्यारे दोस्त को जिन्दगी में देखता था और यही सववब है कि मुझे तुम दोनो से किसी तरह का डर नहीं लगता।

विमला०। मगर नही, तुम्हें हम लोगों से डरना चाहिये, हम लोग तुम्हारे हितेच्धु कभी नहीं हो सक्ते, क्योंकि हम लोगों ने जो कुछ सुना यह कदापि भूल नहीं हो सकता।

गदाधर०। (दर्वाजे से बाहर निकल कर और विमला के पास आ-