यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
भूतनाथ
 



नाथ ने वहां ऐयारी का कोई जाल फैलाया हो और इस रात के समय कुछ वह कर भी सके। थोडी सी तो रात रह गई है, अच्छा होता अगर यह बिता दी जाती। प्रात काल हमलोग देखेंगे कि भूतनाथ कहाँ जाता और क्या करता है। यद्यपि वह स्वतन्त्र हो गया है मगर इस घाटी के बाहर नहीं जा सकता और हमारे मकान तथा बंगले में भो उसकी गुजर नहीं हो सकती।

कला०। मैं भी इस राय को पसन्द करती हू, चलो बंगले के ऊपर छत पर चल कर बैठे।

विमला०। अच्छा चलो।

इन्दु०। (चलते हुए) मगर ताज्जुब है कि इतनी जल्दी भूतनाथ को आग सुलगाने के लिए इतना सामान कैसे मिल गया!

कला०। बहिन यह कोई ताज्जुब की बात नहीं है। हमलोगों की जरूरत के लिए जंगल की लकडिया बहुत बटोरी गई थी जिनके बहुत बडे-बडे दो तीन ढेर वहा कैदखाने के पास ही में लगे हुए थे। मालूम होता है कि उन्ही लकड़ियों से भूतनाथ ने काम लिया है।

इन्दु०। हाँ तब तो उसे बहुत सुबीता मिल गया होगा, मगर क्या तुम खयाल कर सकती हो कि भूतनाथ की यह कार्रवाई किसी और मतलब से भी हुई है?

विमला०। मैं नहीं कह सकती, सम्भव है कि उसका और ही कोई मतलब हो, खैर देखा जायगा।

इसी तरह की बातें करती तथा दर्वाजों को खोलती और बन्द करती हुई तीनों वहिन बंगले को छत पर चढ़ गई और एक अच्छे ठिकाने बैठ कर उस तरफ देखने और सुबह का इन्तजार करने लगी।

उस समय कला और विमला से बहुत बडी भूल हो गई, क्योकि वे तोनों वहिने इस अद्भुत बंगले को हिफाजत के लिए नव आई तो उन्होने रोशनी का कोई खास बन्दोवस्त नहीं किया, बंगले का इन्तजाम करने के याद वे तीनों बहिनें जब पहरे वाली लोंडी के चिल्लाने की आवाज सुन कर