इसे खिलाई है मगर कुछ फायदा होने का रंग नहीं है क्योंकि देर बहुत हो गई, कुछ और दवा पहुँँचती तो अच्छा था।
विमला० । राम राम, मगर यह इस कम्बख्त को सूझी क्या? और इसने कौन सा पाप किया है जिसके लिये ऐसा प्रायश्चित करना पड़ा।
कला०। बहिन पाप तो इसने नि सन्देह बहुत भारी किया है जिसका प्रायश्चित इसके सिवा और कुछ यह कर ही नहीं सकती थी, परन्तु मुझे इसके मरने का दुःख अवश्य है । जो काम इसने किया है उसके करने की आशा इससे कदापि नहीं हो सकती थी और जब इससे ऐसा काम हो गया तो किसी और लौंडी पर अब हम लोग इतना विश्वास भी नहीं कर सकते। हा, लालच में पड कर इस चुडैल ने हम दोनों वहिनों का असल हाल गदाधरसिंह को बतला दिया और कह दिया कि तुमसे बदला लेने के लिये यह सब खेल रचे गए है, और साथ ही इस के भूतनाथ का वटुआ भी यहा से ले जाकर उसे दे दिया। परन्तु इतना करने पर भी जब भूतनाथ ने इस सूखा ही टरका दिया तब इसे ज्ञान उत्पन्न हुआ और ग्लानि में आकर जहर खा लिया। जब जहर अच्छी तरह तमाम बदन में भीन गया तब यह हम दोनो से मिलने और अपना पाप कहने के लिये यहां आयी थी, इसे यहां आये बहुत देर नहीं हुई।
विमला०। (हाय से अपना माथा ठोक कर) हाय हाय, इस कम्बख्त ने तो बहुत ही बुरा किया! क्या जाने यह इससे और भी कुछ ज्यादे कर गुजरो हो। जिस भेद को छिपाने के लिये तरह तरह को तरकीवें की गई थी उस भेद का आज इसने सहज ही में सत्यानाश कर दिया। हाय, अब भूतनाथ भी जरूर हमारे कब्जे से निकल गया होगा। जब उसे ऐयारी का वटुआ मिल गया तब वह उस कैदखाने के भी बाहर हो गया हो तो आश्चर्य नहीं । वह बडा ही घूर्त और मक्कार है जिसके फेर में पड कर चन्दो ने हम लोगों को बर्वाद कर दिया और खुद भी दीन दुनिया दोनों में से कही के लायक न रही!!
कला०। वेशक ऐसा ही है, यद्यपि इस बात की आशा नही हो सकती
कि भूतनाथ इस घाटी के बाहर हो जायगा तथापि उसका कैदखाने से बाहर