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भूतनाथ
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कैसे गए।"

विमला० । हा पहिले उनका शायद यही खयाल था मगर आज तो इसी मकान में बैठे हुए हैं।

भोला०। क्या इसके अन्दर कोई मकान है ?

विमला०। हा बहुत सुन्दर मकान है ।

भोला०। कितनी दूर पर?

विमला०। बहुत थोडी दूर पर, तुम मानो तो सही।

ये दोनो औरतें बेचारी भला मेरे साथ क्या दगा करेंगी।" यह भोलासिंह आगे बढा और इनके साथ सुरंग के अन्दर घुस गया।

जो हाल प्रभाकरसिंह का इस सुरंग में हुआ था वही हाल इस समय भोलासिंह का हुआ अर्थात् पीछे की तरफ लौटने का रास्ता बन्द हो गया और विमला तथा इन्दु के आगे बढ़ जाने तथा चुप हो जाने के कारण वह जोर जोर से पुकारने और टटोल टटोल कर आगे की तरफ बढने लगा।

प्रभाकरसिंह को इसके आगे का दर्वाजा खुला हुआ मिला था मगर भोलासिंह को आगे का दर्वाजा खुला हुआ न मिला, उसे दोनो दर्वाजों के अन्दर बन्द करके विमला और इन्दु अपने डेरे की तरफ निकल गई।

|| पहिला हिस्सा समाप्त || |
२५ वा सस्करण]
[११०० प्रति
२६६६ ई.

मुद्रा-महरी प्रेस, वाराणसी।