किया । मैं ही ऐसी कम्बख्त थी जो उसके फन्दे में आ गई, अब मुझे जरूर अपने इस पाप का प्रायश्चित्त करना पडेगा।"
इसी तरह की वात सोचती वह लौंडी वहां से चली गई।
रात आधी से ज्यादे वीत जाने पर भी कला बिमला और इन्दुमति की आँखों में नीद नहीं है । न मालूम क्सि गम्भीर विषय पर ये तीनो विचार कर रही हैं । सम्भव है कि भूतनाथ के विपय ही में कुछ विचार कर रही हो । अस्तु जो कुछ हो इनकी वातचीत सुनने से मालूम हो जायगा।
इन्दु०। (विमला की तरफ देख कर ) वहिन! जब इस बात का निश्चय हो गया कि तुम्हारे पति को गदाधरसिंह (भूतनाथ) ने मार डाला है तव उसके लिये बहुत बडे जाल फैलाने और सोच विचार करने की जरूरत ही क्या है ? जब वह कम्बख्त तुम्हारे कब्जे में ना गया है तो उसे मार कर सहज ही में बखेडा तै करो।
विमला० । (ऊँची सांस लेकर) हाय! वहिन तुम क्या कहती हो?इस कमोने को यो ही सहज में मार डालने से क्या मेरे दिल की आग बुझ जायगी ? क्या कहा जायगा कि मैंने उसे मार कर अपना वदला ले लिया ? किसी को मार डालना और वात है और वदला लेना और बात है।इसने मेरे दिल को जो कुछ सदमा पहुँचाया है उससे सौ गुना ज्यादे दुख इसे हो तव मै समझू कि मैने कुछ बदला लिया।
इन्दु० । वहिन ! तुम खुद कह चुकी हो कि यह बहुत बुरी वला है अस्तु यदि यह तुम्हारे कब्जे से निकल गया या तुम्हारे असल भेद की इसे खबर हो तो बहुत बुरा हो जायगा।
विमला० । वल्कि अनर्थ हो जायगा! तुम्हारा कहना बहुत ठीक है, मगर उसे हमाग भेद पुछ भी नहीं मालूम हो सकता और न वह यहा से निकल कर भाग ही जा सकता है।