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पहिला हिस्सा

लिए मैं जरा प्रागे वढ कर देखता हूँ कि कौन हैं।

इतना कह कर वह नौजवान उठ खडा हुआ और उसी तरफ बढा जिधर से वे लोग पा रहे थे। कुछ ही दूर भागे वढने और पहाडी से नीचे उतरने पर उन लोगो का सामना हो गया । यद्यपि रात का समय था और केवल चाँदनी ही का सहारा था, तथापि सामना होते ही एक ने दूसरे को पहिचान लिया । हमारे नौजवान को मालूम हो गया कि ये हमारे दुश्मन के नादमी है और उन लोगों को निश्चय हो गया कि हमारे मालिक को इसी नौजवान के गिरफ्तारी की जरूरत है।

ये लोग जो दूर से गिनती में तीन चार मालूम पडते थे वास्तव मे छः आदमी थे जो हर तरह से मजबूत और लडाई के सामान से दुरुस्त थे । ढाल तलवार के अलावे सभो के कमर में खञ्जर और हाथ मे नेजा था। उन सभों में से एक ने आगे बढ कर नौजवान से कहा, "वडी खुशी की बात है कि श्राप स्वयम् हम लोगो के सामने चले आए। कल से हम लोग यापको खोज मे परेशान हो रहे है वल्कि सच तो यो है कि ईश्वर ही ने हम लोगो को यहां तक पहुचा दिया और यहां प्रापका सामना हो गया। क्षमा कोजिएगा, श्राप हमारे अफसर और हाकिम रह चुके है इसलिए हम लोग आप के साथ वेअदवो नही करना चाहते मगर क्या करें मालिक के हुक्म से लाचार है, जिसका नमक साते है । इस बात को हम लोग खूब जानते है कि आप विल्कुल बेकसूर है और पाप पर व्यर्थ हो जुल्म किया जा रहा है,परन्तु ...

नौजवान० । ठीक है, ठीक है, मेरे प्यारे गुलावसिंह ! मैं तुम्हें अभी तक वैसा ही समझता हू और प्यार करता हू क्योकि तुम वास्तव ने नेक हो और मुझमे मुहब्बत रखते हो। तुम वेशक मुझे गिरफ्तार करने के लिए पाये हो और मालिक के नमक का हक अदा किया चाहते हो, अस्तु मैं सुशी से तुम्हें प्राशा देता है कि तुम मुझे गिरफ्तार करके अपने मालिक के पास ले चलो, परन्तु क्षत्रियों का धर्म निवाहने के लिए में गिरफ्तार न होकर तुमसे लडाई अवश्य करुगा, इसी तरह तुम्हें भी मेरा मुलाहिजा न