१६ भूगोल [वर्ष १६ इतिहास- रणजीत सिंह प्रथम (१८००-१५)- रणजीत सिंह ने मरहठों का आक्रमण देख यह बात यहाँ बार गूजर वंश के लोग राज करते हैं। यह राज्य निश्चित जानी कि उनका सत्यानाश हो जावेगा । इसलिए अँगरेजों के आने के थोड़े ही पहले स्थापित हुआ। रणजीत सिंह ने मरहठों से संधि कर ली। इस प्रकार पेशवा प्राचीन इतिहास ( १७००-१८००)- द्वारा इनको राजा की पदवी मिली और यह राज्य दतिया राज्य से अलग एक स्वतन्त्र राज्य हो गया । यद्यपि यह कोशिश की जाती है कि इस राज्य का रणजीत सिंह द्वितीय (१८१५-२५)- ऐतिहासिक सम्बन्ध प्राचीन इतिहास से किया जाय । किन्तु रणजीत सिंह पुत्रहीन थे इसलिए उनकी मृत्यु के यह बिलकुल बेबुनियाद है । राजा रणजीतसिंह के पहले ये पश्चात् दयाराम के वंश के रणजीत सिंह हृदय शाह के केवल जमींदार थे । और इनकी जागीरें दतिया राज्य पुत्र को सरदारों ने गद्दी पर बैठाया । इस समय अंग्रेज़- के अधिकार में थीं। साम्राज्य भली भाँति स्थापित हो चुका था, इसलिए रणजीत इनकी वंशावली चन्द्रभान गूजर के समय से बताई जाती सिंह ने अँग्रेज़ सरकार से प्रार्थना की कि वह भी शरण में है। ये कूच और भाँडर जिलों में एक अमींदार की भाँति आ ले लिया जाय । इस प्रकार १८०७ में अंग्रेजों से संघि हो कर बसे । चन्द्रभान के बाद उसके पुत्र दयाराम हुए। उनकी गई। मृत्यु के बाद परसराम हुए जिन्होंने राज्य को बढ़ाया। हिन्दूपत (१८२७-६०)-- ओरछा राज्य के इतिहास से पता चलता है कि परसराम १८२७ में रणजीतसिंह की मृत्यु हो गई । हिन्दूपत उसके परसोंदा गाँव में रहते थे जो दतिया राज्य के सिधा पुत्र राज गद्दी पर विराजमान हुए। १८५८ ई. राजा तहसील में है। इनके तीन पुत्र ताने शाह, सूरतसिंह और का मस्तिष्क खराब हो गया इसलिए राज काज रानी को भोपालसिंह थे। ताने शाह पिता के बाद राज्य के अधिकारी सौंपा गया। १८६२ ई. में छतर सिंह, हिन्दूपत के पुत्र ने हुए । इन्हीं को राज्य का नीव डालने वाला कहा जा सकता राज गद्दी माँगी । अंग्रेज सरकार ने माँग मंजूर कर ली और है। राजा रामचन्द्र दतिया के मृत्यु के पश्चात राजगद्दी के राजा बनाया। अमरगढ़ की तहसील हिन्दूपत और रानी बारे में लड़ाई छिड़ी । इन्द्रजीत सिंह ने ओरछा के राना से को जीविका के लिये प्रदान की गई । इनका दोगला पुत्र सहायता मामी । अंत में ओरछा राज्य की सहायता से अर्जुन सिंह उर्फ अलीबहादुर भी इन्हीं के साथ रहता इन्द्रजीत राजा हुए। उस समय जिन्होंने साथ दिया था उन्हें था। रानी की मृत्यु १८८३ में और राजा हिन्दूपत की मृत्यु इनाम बाँटे गए और जागीर दी गई। उसी समय जागीर में १८६० में हुई। पाँच गाँव और राजघर की पदवी तानेशाह को मिली। ताने छतरसिंह (१८६०-६६)- शाह के पुत्र मदन सिंह ( १७२५-७०) ने उन्नति की और यद्यपि १८६२ से हो चतर सिंह राज काज करते रहे समथर किले के गवरनर हो गए । इनके दो पुत्र विशन सिंह तो भी वे सचमुच १८६० से ही राजा माने गए। छतर और देवीसिंह हुए। ( १७००-१८०० ) देवी सिंह राजा सिंह बड़े चतुर राजा थे। १८६२ ई० में अंग्रेज सरकार हुए। देवी सिंह से दतिया महाराज से बहुत घनिष्टता थी। ने गोद लेने की सनद प्रदान की। १८७६ ई. में नमक के इस हेतु उन्हें पाँच गाँव इनाम में मिले जिसमें समथर गाँव बारे में प्रतिज्ञापत्र लिखा गया और अंग्रेज सरकार ने भी शामिल था। यद्यपि समथर राज्य दरबार इस बात को १४५० रु. सालाना देने का वचन दिया। १८५२ में कथउन्ड नहीं मानते तो भी यह बात सत्य प्रतीत होती है। मरहठों और हमीरपुर नहर के लिये भूमि दी गई और १८८४ के आक्रमण से दतिया राज कमजोर हो गया तो समथर में प्रेट इण्डियन पेनिनशुला रेलवे के लिये भूमि मिली । राज्य को बढ़ने का अच्छा अवसर मिला और यहाँ के राव १८७० ई० में ज्य क ऑफ एडेन्परा के माने पर आगरा स्वतन्त्र हो गए। देवीसिंह के तीन पुत्र थे। पहार सिंह, में दरबार हुआ। इसमें राजा भी गए । १८७७ में राजा विजय सिंह की मृत्यु हो जाने के कारण रणजीत सिंह दिल्ली गए । वहाँ एक झंडा, सोने का तमगा और राजा हुए। महाराजा की पदवी मिली। - 1 -
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