[वर्ष १६ १२ भूगोल १७३२ में उदाजी पंवार ने दयाबहादुर को राव का व्याह गोविन्द राव गायकवाड़ की पुत्री से हराकर और भाग्य चक्र से अपने पुराने खोए हुए हुश्रा जिससे आनन्द राव द्वितीय हुए । १७८० में राज्य पर फिर अधिकार जमाया। खाँडेराव की मृत्यु हो गई। जब मुसलमानों ने पँवार राजपूतों को दक्षिण भानन्द राव द्वितीय ( १७८०-१८०७ )- की ओर ढकेला तो यह वहाँ जाकर बिलकुल आनन्द राव का ननिहाल ही में पालन-पोषण मरहठों में मिल गए । महाराज शिवाजी के समय हुआ। वहीं उनका सटवाजी साठे की पुत्री से व्याह में साबाजी राव पवार ने अच्छी उन्नति की और हुआ। १७ वर्ष की अवस्था में धार आए, रंगराव नाम पैदा किया। उनके पुत्र कृष्णजी और पौत्र दीवान ने नाराज होकर सिंधिया और होल्कर को बूबाजी ने और भी अधिक अपने वंश का नाम धार के विरुद्ध खड़ा किया जिससे एक के बाद बढ़ाया । सतारा महाराज साह के समय में बूबाजी दूसरे कई आक्रमण धार राज्य पर हु: । १७०३ ई० के पुत्र कालूजी और सम्भाजी अच्छे अच्छे पदों में श्रानन्द राव ने असई के युद्ध में सिंधिया का साथ पर नियुक्त किये गए। दिया जिसमें सिंधिया की हार हुई। आनन्द राव उदाजी प्रथम ( १७२५-४२)- भाग कर धार आए । इस समय आगर, सुनेर, कालूजी के पुत्र तुकोजी और जीवाजी ने बदनावर, वरसिया, ताल, मैंदावल और राजपूताना सीनियर ( बड़ा ) और जूनियर (छोटा ) देवास के प्रदेश इनके हाथ से निकल गए। राज्य की नींव डाली । सम्भा जी के तीन पुत्र उदाजी, १८०७ ई० में आनन्द राव अपनी गर्भवती स्त्री आनन्द राव, और जगदेव हुए । उदाजी बाला विश्व- के हाथ राज्य छोड़ कर परलोक सिधारे। मैना नाथ पेशवा के यहाँ नौकर रहे और कई बार मालवा बाई ने राज्य प्रबन्ध बड़ी सावधानी से किया । मांडू का भ्रमण किया। एक बार कुछ दिनों तक धार पर में जाकर रामचन्द्र राव मैनाबाई से पैदा हुए। इनका अधिकार भी रहा । १७२५ में बाजीराव रानी ने अपने बैरियों का सामना बड़ी चतुरता और पेशवा ने उदाजी को मालवा पर कर लगाने की बहादुरी से किया। इसी बीच रामचन्द्र राव की सनद दी। १७३२ में उदाजी ने टिरला के दयाबहा मृत्यु होगई तब रानी ने अपनी बहन के पुत्र लक्ष्मण दुर को हरा कर अपना अधिकार मालवा प्रदेश पर राव को होल्कर और सींधिया की राय से गोद लिया। जमाया। अभाग्यवश पेशवा उदाजी से अप्रसन्न हो लक्ष्मण राव, रामचन्द्र राव के नाम से गद्दी पर बैठे। गया और इनको हटाकर इनके भाई आनन्द राव को रामचन्द्र राव द्वितीय ( १८१०-३६)- इनके स्थान पर नियुक्त कर दिया। इस समय होल्कर, सीन्धिया और पिंडारियों के आनन्द राव ( १७४२-४६)- आक्रमण के कारण केवल धार नगर ही शेष रह १७४२ में पेशवा ने धार राज्य की सनद आनन्द गया था। बड़ी कठिनाई से जीविका चलती थी। राव को बख्शी । उस समय धार राज्य वर्तमान राज्य इसी समय अंग्रेजों का आक्रमण हुआ जिससे शान्ति से कहीं अधिक बड़ा था । होल्कर और सिंधिया के स्थापित हुई । १० जुलाई सन् १८१२ को धार राज- बाद पांवार वंश का नम्बर था। १७४६ आनन्द धानी में अंग्रेजों से सन्धि हुई जिससे बदनावर, राव की मृत्यु के बाद उनके पुत्र यसवन्त राव गही बेरसिया, कुकसी, नालछा और दूसरे प्रान्त राजा को पर बैठे। किन्तु १७६१ ई० में पानीपत की तीसरी दिये गए । २५,००,००० का कर्ज भी राजा को दिया लड़ाई में मारे गए। उसके बाद उनके पुत्र खाँडेराव गया। जिसके बदले में बेरसिया का परगना ५ साल २३ वर्ष की अवस्था में गद्दी पर बैठे। राजकाज तक अंग्रेज सरकार के हाथ रहा । बापू रघुनाथ राज्य माधोराव ओरेकर (ब्राह्मण) करता था। १७७४ के मंत्री बनाए गए। राज्य की आय ३५००० से में खाँडेराव ने राघोबा की सहायता की। इसी बीच २,६७,००० हो गई । १८२१ में १२ वर्ष की अवस्था में धार के किले में बाजीराव द्वितीय पैदा हुआ । खाँडे राजा की शादी दौलत राव सिंधिया की पौत्री अन्न
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