मिली। अङ्क १-४] ओरछा या टीकमगढ़ राज्य SK सितम्बर को सेनाएँ झाँसी गई । और घेरा डाला, जिनकी जनसंख्या १००० और २००० के बीच किन्तु २२ अक्टूबर को घेरा उठा लिया गया। १८६२ में है। और १६ ऐसे हैं जिनकी जनसंख्या २००० और में हमीरसिंह को शान्ति स्थापित करने की सनद ५००० के बीच की है। सामाजिक स्थिति- प्रतापसिंह ( १८७४)- १८७४ ई० में हमीरसिंह का स्वर्गवास होगया व्यक्ति पढ़े लिखे हैं जिनमें ८६ स्त्रियाँ हैं । धोती, बुदेलखंडी भाषा बोली जाती है। कुल ४१२५ उसके बाद स्वर्गीय महाराजा के छोटे भाई कुर्ता, मिर्जई बन्द, साफा यहाँ के पुरुषों के मुख्य महाराजा प्रतापसिंह गद्दी पर बैठे। सिंहासन पर कपड़े हैं । स्त्रियाँ साड़ी धोती, और चोली का प्रयोग बैठते समय इनकी अवस्था २० वर्ष की थी। करती हैं। भोजन यहाँ का शाकाहारी है। नीच मेजर ए० म्यून राज्य-प्रबन्ध के लिये थोड़े दिनों जाति के लोग मांस भी खाते हैं। अच्छे घरों में के लिये भेजे गए । किन्तु जून १८७६ ई० में राजकाज गेहूँ, जौ, चावल का आहार होता है। छोटी महाराजाधिराज के हाथों सौंप दिया गया और जाति वाले प्रायः साँवा और कोदो का प्रयोग अंग्रेज अफसर वापस बुला लिया गया। गदर के करते हैं। घर मिट्टी के बनाए जाते हैं । उनपर खप्पर समय तक टहरौली परगना के लिये झाँसी राज्य को या छप्पर डाले जाते हैं। शादियाँ भारतवर्ष के और ३००० रुपये देने पड़ते थे। विप्लव-काल में सहायक स्थानों की भाँति ही होती हैं । मरे हुए लोग जला रहने के इनाम में यह माफ कर दिया गया और दिये जाते हैं । दशहरा, दीवाली और होली खास- मोहानपुर का स्तमरारी लगान भी माफ कर दिया स्नास त्योहार हैं जो राज्य में और दरवार में मनाए गया । १८८८ ई० में झिाँसी मानिकपुर लाईन की जाते हैं। ईदुलफितर और रमज़ान मुसलमानों के भूमि भी टीकमगढ़ राज को वापस दे दी गई। त्योहार हैं । ऐसे समय महाराजाधिराज एक बार महाराजा प्रतापसिंह को १८८६ में सरामद मुख्य मसजिद में जाते हैं। पुस्तकालय राजा हाय बुन्देल खण्ड की पदवी मिली। उनको मार्ग- गुरुकुल कांगड़ी सवाई की भी पदवी मिली १६०३ में महाराजा- विश्व धिराज दिल्ली दरबार में गए । इनको सोने का एक दो मुख्य माग हैं। पहली टीकमगढ़ से जतारा तमग़ा मिला । सन् १८६८ में जी० सी० आई० ई० होकर मऊ जाती है। दूसरी झाँसी से मऊ जाती की पदवी मिली और सन् १६०६ में जी० सी० है। रेलवे झाँसी से मानिकपुर जाती है। खास एस० आई० की पदवी मिली । १७ बन्दूकों की निजी स्टेशन राज्य के ओरछा, तेहरका, अर्जर हैं। सलामी और १५ बन्दूकों की ( राजा की) सलामी शासन-प्रणाली--- दगाई जाती है। राजप्रबन्ध राजा स्वयं देखा करते हैं। उनकी पदवी- सहायता के लिये दो दीवान रहते हैं । दीवान विभाग हिज हाईनेस सरमद राजा हाय बुन्देलखण्ड मदारुलमुदामी कहलाता है। इनमें से एक दीवान सवाय महेन्द्र महाराजा श्री सर वीर सिंह देव बहा- सेना विभाग का भी मालिक होता है ।' सेशन दुर के. सी० एस० आई० (बुन्देला राजपूताना )। जज न्याय विभाग का अगुवा होता है। और सभी राजा प्रिन्सेज़ अप चैम्बर के मेम्बर हैं। कार्य महाराजाधिराज से पूछ कर करता है । इसके राज्य में टीकमगढ़ मुख्य नगर और राजधानी यहां से केवल महाराजाधिराज के यहां ही अपील है। इसकी जनसंख्या ३,१४,६१६ है । ७०६ गाँव हैं। हो सकती है । जिसमें ५१६ ऐसे गाँव है जिनकी जनसंख्या १०० से राज्य का शासन, राजकीय विभाग, शासन क्रम है। १ १५ ऐसे हैं जिनकी जनसंख्या १००० विभाग, सेना विभाग, रेवन्यू विभाग, तामीरात और ५००० के बीच की है। ५३ ऐसे गाँव हैं विभाग और कोठी प्रतिपालक द्वारा होता है । -
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