यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

. भूगोल [वर्ष १६ और उत्तरी में इलाहाबाद की बोली की विशेषता है । शुद्ध धानी होकर ही गयी है। इसी से उत्तर की ओर रीवा- बघेली रीवा नगर के आस-पास में ही बोली जाती है। इलाहाबाद रोड निकली है । दक्षिण भारत से इलाहाबाद जन-संख्या, उपज और प्राय और मिर्जापुर को मिलाने के लिए यही सड़क है । इसी से रीवा सतना रोड निकलती है। रीवा से गुढ़ और गोविन्द- यहाँ की जन-संख्या १५ लाख, ८७ हजार, ४ सौ ४५. गढ़ के लिए भी पक्की सड़कें हैं। दक्षिणी से उत्तरी का है और दक्षिणी भाग से मध्य भाग तथा मध्य भाग से उत्तरी भाग अधिक आबाद है। यही हाल उपज का भी है। सम्बन्ध जोड़ने के लिये कैमूर पर्वत श्रेणी को चार स्थानों से दक्षिणी से उत्तरी भाग क्रमशः अधिक उपजाऊ है। काट कर और शोण में सूखी ऋतुओं का पुल बना कर ठेठ दक्षिणी भाग में अमरकण्टक और पुष्पराजगढ़ तक के लिये आबादी का औसत ११७ मनुष्य प्रति वर्गमील और पहाड़ी भाग का ८७ मनुष्य प्रति वर्गमील है। दक्षिणी भाग की सरके निकाली गयी हैं, जिनमें लारियाँ दौड़ा करती हैं। दक्षिणी जिले के कुछ भाग से बङ्गाल नागपुर रेल की प्रधान उपज धान और जङ्गल की चीजें हैं। मध्य और उत्तरी कटनी-विलासपुर लाइन निकल गयी है । और उत्तरी भाग भाग में धान, कोदो, गेहूँ, चना, अरहर, अलसी सब कुछ से जी० आई० पी० रेल की इलाहाबाद इटारसी लाइन होता है। १८ लाख ५४ हजार एकड़ जमीन जोती-बोई जाती है। प्रति शत ७५ मनुष्य कृषि-जीवी हैं। खेती दैव- निकल गई है । इसी का सतना स्टेशन राज्य का दरवाजा है। मातृक ही होती है। सिंचाई उत्तरी कछारी प्रान्त ( तरिहार ) में हो कुछ होती है। यहाँ की माली ( भूमि-कर की ) दर्शनीय स्थान ५१,८०,०००) है, कही जाती है । एक प्रकृत-प्रेमी के लिए शोण-वर्णन में बताए हुए यहाँ के भू-गर्भ में पत्थर, लोहा और कोयला विशेष उसके विशेष स्थल सब दर्शनीय हैं। अमरकण्टक तो एक रूप से पाया जाता है । प्रायः दक्षिणी प्रान्त के सारे भू-गर्भ तीर्थ ही है। दक्षिणी भाग के बान्धवगढ़ तहसील में बान्धव में कोयला होने का अनुमान किया जाता है। कहा जाता है गढ़ का ऐतिहासिक किला भी दर्शनीय है । यह एक पहाड़ी कि संसार में अन्य किसी शासन के अधीन इतने बड़े क्षेत्र किला है। इसके चारों ओर के किनारे इतने खड़े हैं कि फल में कोयला नहीं है । उमरिया और बुढ़ार की खानों से एक रास्ता के सिवा ऊपर जाने के लिये और कोई रास्ता कोयला निकाला भी जाता है । यह कोयला दूसरे दर्जे का नहीं है । ऊपर मीलो लंबा-चौड़ा मैदान है। यहाँ राज्य की माना जाता है। ओर से रसद और कुछ फौज रहती है। उमरिया कोयले की व्यवसाय और वाणिज्य खानि भी दर्शनीय है। रीवा राज्य का प्रधान व्यवसाय खेती और पशु-पालन कैमूर की चुहिया घाटी से दक्षिणी भाग का दृश्य है तथा वाणिज्य गल्ला और घी बेचना है। किन्तु कोई बहुत बढ़िया दिखाई देता है, विशेष कर शरद ऋतु में जब किसान सङ्गठित रूप से इसका भी व्यवसाय नहीं करता। हरे-पीले धान के खेतों में पाबी भी भरा रहता है। इसी गाँवों के पास की छोटी-छोटी मण्डियों में थोड़ा-थोड़ा माल प्रकार मार्कण्डेय के पास की सड़क की घाटी से वर्षा ऋतु अपनी आवश्यकता पूरी करने के लिए गाँव वाले ले जाते हैं का दृश्य बड़ा मनोहर होता है । गोविन्दगढ़ का तालाब या अथवा गाँव या मण्डियों के बनिये अपने टट्टुओं पर गाँव कृत्रिम झील भी दर्शनीय है। यह ११ सौ बीघे में है। गाँव घूम कर माल खरदीते हैं । किसानों या गाँवों का कोई रीवा राजधानी के राज-महल और वेंकट-विद्या-सदन संग्रहा- लय भी दर्शनीय हैं। उत्तरी मध्य भाग की नदियों के प्रपात सङ्गठन न होने से बनिये किसानों का माल मनमाना भाव में लेते हैं और बदले में अपना माल ( नोन, गुड़, एक उत्तम प्राकृतिक दृश्य हैं । इन में कई प्रपातों की धारा गरमियों में बन्द हो जाती है। केवल टमस, बीहर और तम्बाकू, तेल, सुपारी ) मनमाना भाव में देते हैं । महाना नदी की धारा नहीं सूखती । परन्तु इन सब का दृश्य आने जाने का मार्ग शरद ऋतु में ही उत्तम रहता है । रीवा-नगर बिछिया और उत्तरी भाग के पूर्व से पश्चिम को हिन्दुस्तान की मश बीहर नदियों के संगम पर बसा हुआ है । दोनों नदियों के हूर सड़क ग्रेट डेकेन रोड निकल गई है। यह रोषा राज संगम का दृश्य बहुत सुन्दर है। -