[वर्ष १६ ७२ भूगोल बिंझ श्रेणी के उत्तर यमुना-गंगा के कछारी मैदान का परिवर्तन हुधा है कि रीवा राज्य की शोण और बिहार की ८१६ वर्गमील भू-भाग भी इस राज्य में सम्मिलित है। शोण को देख कर कोई एक नहीं कह सकता । जहाँ रीवा राज्य इस भाग को भूमि की अवस्था २० से ३० लाख वर्षों को में यह गहरी हो कर इतने ऊँचे किनारे बनाती है कि बो से बड़े कूती जाती है। बूगों में भी इसका पानी कभी ऊपर नहीं आता वहाँ बिहार पर्वत और नदियाँ में यह बिना किनारों ( तटों ) की होकर मीलों चौड़ी और इतनी छिछली ( उथली) हो जाती है कि वर्षा में भी सर्वत्र राज्य का अधिकांश भाग विशेष कर दक्षिण का वन्य अथाह नहीं होती । रीवा राज्य में इसका बालू लाल रंग प्रान्त विन्ध्याचल की विभिन्न श्रोणियों से भरा हुआ है। का है। इसके शोण नाम का यही कारण मालूम होता है; इनमें मुख्य सब से दक्षिण मेकल श्रेणी है । यह पूर्व की वयोंकि संस्कृत भाषा में शोण का अर्थ लाल होता है। ओर छत्तीसगढ़ के पर्वतों तक फैली हुई है । समुद्र-तल से संस्कृत में इसका दूसरा नाम हिरण्यवाह है, जिस का अर्थ इसकी उँचाई ३०,०० फुट है। मध्य में कैमूर श्रेणी पूर्व से होता है सोना बहाने वाला । प्राचीन काल से खानों के पश्चिम ‘तक, राज्य के आर-पार, मान-दण्ड की भाँति, अतिरिक्त नदियों की बालू से भी सोना निकाला जाता था। खड़ी हुई है। राज्य में इसकी लम्बाई १०६ मील और अब भी शोण की बालू में सोना पाया जाता है, पर इतना समुद्र-तल से उँचाई १८०० फुट है। इतनी लम्बाई कम कि उस के निकालने में खर्च अधिक पर जाता है। इस में यह कहीं टूटी हुई नहीं है । उत्तर में बिंझ श्रेणी राज्य नदी का पानी रीवा राज्य में अत्यन्त गहराई में होने के के उत्तर-पूर्व के नाक कैमूर से ही प्रारम्भ होकर पश्चिम की कारण उसका कोई उपयोग नहीं होता और न यह कोई ओर पन्ना पर्वत-श्रेणी में समा गई है । उपजाऊ कछार ही बनाती है । बहुत थोड़े लकड़ी के व्यापार जहाँ पर्वतों की ऐसी प्रचुरता हो वहाँ नदियाँ भला के लिए इस नदी को काम में लाया जाता है। इसके किनारे क्यों न हों ? पर्वतों की भाँति दक्षिणी प्रान्त अनेक छोटी- के राज्य के जंगलों से ठेकेदार लोग बाँस और लकड़ी काट बड़ी नदियों से भी भरा हुआ है। राज्य के धुर दक्षिण में कर बेड़ा द्वारा शोण से बिहार के डेहरी स्थान तक ले जा मेकल-पृष्ठ पर अमरकण्टक भारतवर्ष के भूगोल में एक कर बेंचते हैं । इस कार्य में २०-२२ दिन बेड़े पर ही पानी- महत्वपूर्ण स्थान है । वैसे तो यह नर्मदा के उद्गम के लिए पानी जाना पड़ता है। जुहिला, महानदी, बनास, गोपद ही प्रसिद्ध है, पर इस जल-विभाजक के दूर-दूर चारों ओर बड़ी-बड़ी नदियाँ इसकी सहायक हैं । इन में अनेक दहारें हैं से चार नदियों का उद्गम हुआ है । पश्चिम नर्मदा, उत्तर और उन में अनेक जीव-जन्तु भी हैं । मार्कण्डेय, शोण, पूर्व महानदी और दक्षिण बाणभंगा । भौगोलिक बरौंधा, नरबार, नौघटा, भमरसेन इत्यादि स्थानों में शोण दृष्टि से रीवा-राज्य एक ऐसा राज्य है जिसका पानी बंगाल दर्शनीय है। और अरब दोनों समुदों में जाता है। अमरकण्टक से नर्मदा उत्तरी और मध्यवर्ती भाग में कैमूर से कई नदियाँ निक- नदी निकली है और केवल ४२ मील पश्चिम ओर विन्ध्याचल लती हैं। वे सब उत्तर ही की ओर बहती हैं । ये नदियाँ रीवा की अधित्यका में वह कर राज्य से बाहर चली गयी है। प्लेटों को सींचने के बाद सैकड़ों फ्रीट की उँचाई से एकदम ४२ मील का पानी नर्मदा द्वारा अरब-समुद्र में जाता है। कछारी मैदान ( तरिहार ) के धरातल पर गिर कर दर्शनीय इस नदी से राज्य को कोई विशेष लाभ नहीं है। प्रपात बनाती हैं। यहाँ इलाहाबाद जिला से बेलंद नदी भी शोण रीवा राज्य की सब से बड़ी नदी है। यह अमर आकर इनसे मिल जाती है। इसी प्रकार सब आपस में कण्टक से पूर्व सोनमूड़ा स्थान से निकल कर कुछ जिला मिल कर अन्त में टमस के नाम से इलाहाबाद जिले में विलासपुर में बहने के बाद फिर रीवा राज्य में आ गई। सिरसा के पास गंगा में गिरती हैं। इन में भी बड़ी-बड़ी और १४४ मील उत्तर की ओर बह कर कैमूरजल-विभाजक दहारें हैं। इनके किनारे शोण की भाँति ऊँचे नहीं हैं, पर इन के कारण उसके समानान्तर १४४ मोल पूर्व की ओर राज्य से भी कोई काम नहीं लिया जाता । इन में बाँध बाँध कर में बहने के बाद युक्त प्रान्त होती हुई विहार में, दामापुर के सिंचाई का काम और प्रपातों से बिजली पैदा करने का पास, गंगा में गिरी है । भूमि के कारण इस नदी में इतना काम लिया जा सकता है।
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