अङ्क १-४] भोपाल ६६ डाली । मित्र बनने के बहाने उसने राजा और उसके के लिये भिल्सा, खेमलास, भोपाल और होशङ्गाबाद साथियों को निमन्त्रण दिया। भोज के समय उसने के मार्ग से बम्बई को भेजी। भोपाल राज्य में अचानक हमला करके सब को मार डाला । फिर अंग्रेजी कम्पनी की हिन्दुस्तानी फौज को सब तरह उसने बिना कठिनाई के जगदीशपुर पर अधिकार की सहायता मिली। कर लिया और उसका नाम बदल कर इस्लाम नगर १८१४ में भोपाल के दूसरे नवाब ने ईस्ट इंडिया रख लिया । पड़ोस की जिस नदी में राजपूतों की कम्पनी की मित्रता प्राप्त करने की पूरी कोशिश की। लाशें फेंकी गई थीं उसका नाम हलाली नदी पड़ मरहठों के विरुद्ध अँग्रेजी फौज को भोपाल राज्य में गया। भिलसा के सूबेदार को अचानक छापा मार होकर जाने के लिये उसने अनुमति दे दी। लेकिन कर उसने भिलसा के किले पर अधिकार कर लिया। किला देने के लिये राजी न हुआ । १८१८ में सन्धि हो इससे उसकी शक्ति बढ़ गई। ग्यारसपुर, दोराहा, गई । इसके अनुसार भोपाल दरबार ६०० घुड़सवार सीहोर, इछावार, देवपूर, गुलगांव और दूसरे स्थान और ४०० पैदल सिपाही कम्पनी के लिये रखने शीघ्र ही उसके हाथ में आगये। कुछ ही समय में को राजी हो गया । बदले में इस्लाम नगर का उसने उस समय की अराजकता से लाभ उठा कर क़िला जो मिधिया के अधिकार में था भोपाल गिनूर गढ़ और दूसरे स्थानों को भी ले लिया। दरबार को दिला दिया गया। पांच परगने भी भोपाल की स्थिति उसे बहुत पसन्द आई। यहीं भोपाल को दिला दिये गये। १८१६ में नवाब उसने शहर की नींव डाली और फतेह गढ़ का किला नज़र मुहम्मद के मरने पर उसकी छोटी बेटी बनवाया। सिकन्दर बेगम ने भोपाल में राज्य किया । गदर के इसके बाद उसने नवाब की उपाधि धारण कर ली समय में भोपाल राज्य ने अंग्रेजी सरकार की जो सहा- और वह एक स्वाधीन सरदार बन गया । १७२३ ई० यता की उसके उपलक्ष में सिकन्दर बेगम को G. में हैदराबाद को जाते समय निजाम ने भोपाल C. S. I. की उपाधि मिली। १८६८ में नवाब पर चढ़ाई की। दोस्तमुहम्मद निजाम का सामना शाहजहां बेगम भोपाल की गद्दी पर बैठी। १६०१ करने में असमर्थ था। अतः उसने अपना बेटा तक उसने राज्य किया। उनके मरने पर १६०१ में यारमुहम्मद निजाम को सौंप दिया। ३० वर्ष के सुल्तान जहां बेगम ने राज्य किया। लगातार परिश्रम के बाद उसने अपनी तलवार और राज्य की सालाना आय ८०,००,००० रु० है। कूटनीति के बल पर एक बड़ा राज्य स्थापित कर वर्तमान नरेश लैफ्टिनेन्ट कर्नल हिज हाईनेस लिया । १७२६ में उसका देहान्त हो गया। सिकन्दर सौलत इफ्तिखारुल मुल्क नवाब मोहम्मद निजाम की सहायता से यारमुहम्मद भोपाल की हमीद उल्ला खाँ बहादुर जी० सी० एस० आई०, गद्दी पर बैठा। उसने भी उदयपुर, सेवान और जी० सी० आई० ई०, सी० वी० ओ० वी० ए० पठारी को मिला लिया। इसी समय १७३६ में (अफगान ) हैं । आपको १६ बन्दूकों की सलामी नादिरशाह का हिन्दुस्तान पर हमला हुआ और दी जाती है और आप चैम्बर ऑफ प्रिन्सेज़ के मुग़लों की रही-सही शक्ति भी क्षीण हो गई । लेकिन मेम्बर हैं। मरहठों का जोर बढ़ने लगा। १५ वर्ष शासन करने अपने माता के राज्य-काल में आप प्रधान मन्त्री के बाद यारमुहम्मद भी मर गया। फैजमुहम्मद के की जगह पर सुशोभित रहे। १९३० में आप नवाब होने पर यहाँ गृह-कलह फैली । लेकिन यहाँ चैम्बर आफ प्रिन्सेज के चान्सलर हुए। आप स्वयं के योग्य दीवान विजयराम ने अच्छा प्रबन्ध किया । राज-प्रबन्ध देखते हैं। आपकी सहायता के लिये फैजमुहम्मद कोई बेटा छोड़ कर न मरा । अतः एक्जीक्यूटिव और लैजिस्लेटिव सभाएँ हैं। न्याय- १७७७ में उसका भाई हयातमुहम्मद खाँ भोपाल विभाग शासन विभाग से बिल्कुल अलग है । • का नवाब हुआ । इसी समय ईस्ट इंडिया कम्पनी ने राज्य में रैय्यतवारी खेतों का प्रबन्ध है । सभी बंगाल । एक फौज बम्बई की सरकार की सहायता किसान राज्य से खेतों को लेते हैं और वे जब तक
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