अङ्क १-४] ६७ भोपाल कहा जाता है कि राजा भोज के एक मन्त्री ने विन्ध्या पर्वत ही भोपाल राज्य में प्रधान जल- यहाँ एक बाँध बनवाया था। इससे इस प्रदेश की विभाजक बनाता है । उत्तर की ओर बेतवा और रक्षा होती थी। इसी से इसका नाम भोजपाल पार्वती दो बड़ी-बड़ी और उनकी कई छोटी-छोटी पड़ा। पीछे से बिगड़ कर इसका नाम भोपाल पड़ सहायक नदियाँ अपना पानी यमुना में गिराती हैं। गया। बेतवा नदी मध्य भारत की प्रधान नदियों में एक निज़ाम हैदराबाद को छोड़ कर भोपाल हिन्दु- स्थानों में उल्लेख आया है । इसका उद्गम जंगली है । प्राचीन ग्रन्थों में भी बेत्रवती ( बेतवा ) का कई स्तान में सब से अधिक प्रभावशाली (सुन्नी) दुर्गम प्रदेश में भोजपुर के पास कुमरी ग्राम से कुछ मुसलमानी राज्य है । इस राज्य का क्षेत्रफल ६,६२४ ही दूर है। यहाँ से निकल कर उत्तर-पूर्व की दिशा वर्ग मील और जन-संख्या ७,२६,६५५ है । भोपाल में भोपाल राज्य में बेतवा नदी ५० मील बहती है। राज्य मालवा के पूर्वी भाग में स्थित है। भोपाल के भोजपुर के पास ही बेतवा में कालिया सोत नाम की पूर्वी जिले बुन्देलखंड और दक्षिणी जिले गोंडवाना को छूते हैं । भोपाल के उत्तर में ग्वालियर, बासोदा, कालिया सोत में मिलती हैं। कुहू और मनियारी भी सहायक नदी मिलती है । गुनी और केरवा नदियाँ कोई, मकसूदनगढ़, टोंक राज्य और मध्य प्रान्त बेतवा की ही सहायक नदियाँ हैं। का सागर जिला है। दक्षिण की ओर नर्मदा नदी पार्वती ( या पश्चिमी पार्वती क्योंकि ग्वालियर भोपाल राज्य को होशंगाबाद जिले से अलग करती है। इसके पूर्व में सागर और नरसिंहपुर के जिले खेड़ी गाँव के पास से निकलती है । पार्वती नदी राज्य में भी इसी नाम की दूसरी नदी है ) बुराना हैं । पश्चिम की ओर ग्वालियर और नरसिंहगढ़ भोपाल राज्य में लगभग ६० मील बहती है। राज्य हैं। लेकिन अक्सर यह नदी भोपाल राज्य की पश्चिमी भोपाल राज्य का अधिकतर (४०४७ वर्ग सीमा बनाती है। अजनाल, पापनास और परुआ मील ) प्रदेश मालवा पठार में स्थित है। यहाँ ऊँचे इसकी सहायक नदियाँ हैं । नीचे लहरदार मैदान हैं जो कुछ पीली घास से ढके लगभग १२५ मील तक नर्मदा नदी भोपाल हैं । उपजाऊ काली या रेगर गिट्टी में कपास की खेती राज्य की दक्षिण सीमा के पास से होकर बहती है। होती है। दक्षिण पूर्व की ओर बलुआ पत्थर की दक्षिण की ओर बहने वाली भोपाल राज्य की प्रायः चट्टानें जो विन्ध्याचल की शाखायें हैं। ठीक दक्षिण सभी नदियां अपना पानी नर्मदा में गिराती हैं। की ओर विन्ध्याचल की प्रधान श्रेणी है । इसके सिन्दोर, खार, घाघरा, तेन्दोनी, बारना, दोबी, आगे नर्मदा की घाटी है । भोपाल का पहाड़ी देश भागनेर, भाभर, कोलार, हम्बार, अजनाल, गोनी लगभग २,८५५ वर्ग मील है । और पठारी प्रदेश से और जामनेर प्रधान सहायक नदियाँ हैं। बहुत छोटा है । सौभाग्य से भोपाल का पठारी प्रदेश भोपाल में भाँवर (भूरी) दूमट, कालमट (काली अधिक बड़ा होने के अतिरिक्त अधिक उपजाऊ मिट्टी ) पिलूटा ( कुछ कुछ पीली ) सियारी ( कुछ है। यहीं गेहूँ, मकई, धान, अफीम और कपास की लाल और काली ) आदि कई तरह की जमीन हैं। खेती होती है । पहाड़ी भाग जंगलों से ढके हैं। लेकिन सब मिला कर उपजाऊ जमीन का क्षेत्रफल भोपाल की पहाड़ियों की औसत उँचाई लगभग २,००० वर्गमील से अधिक नहीं है। २,००० फुट है । चोटियाँ इससे भी अधिक ऊँची हैं। उचाई के कारण भोपाल राज्य की जलवायु पहाड़ी भाग में बलुआ पत्थर बड़े काम का होता है। विकराल नहीं है। नर्मदा की घाटी और विन्ध्या- यह मकान बनाने के लिये बहुत अच्छा होता है । चल के पड़ोस की जलवायु कुछ विषम कही जा
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