अङ्क १-४] इन्दौर ६३ अहल्याबाई के शासन-प्रबन्ध की बहुत ही सिंधिया पेशवा की सहायता के लिये गया, परन्तु प्रशंसा सर जान मैलकम द्वारा की गई है, यद्यपि दोनों को होल्कर ने १८०२ ई. में पूना की लड़ाई में उन्होंने कुछ बढ़ा कर लिखा है तो भी 'स्टेट' में बुरी तरह हराया । बाजीराव भाग कर बेसीन लिखा है कि अहल्याबाई एक बड़ी ही बुद्धिमान चला गया और उसने अंग्रेजों से संधि करने की स्त्री थी । वह अपनी प्रजा की दशा सुधारने के लिये इच्छा प्रकट की। भरसक प्रयत्न करती थी। उसके भरपूर प्रयत्न करने बेसीन की सन्धि ( १८०२)- पर भी उसके प्रान्तों पर बहुधा हमले होते रहते थे और हुबधा किसानों के भागने और गाँवों बाजीराव को अब अंग्रेजों की सहायता की के उजड़ जाने के सन्देश राज्य में आते रहते थे। आवश्यकता थी। उसने प्रतिज्ञा की कि मैं अपने लेखों द्वारा पता चलता है कि मल्हारराव प्रथम खर्च से अंग्रेजी सेना रक्तूंगा, किसी भी योरुपीय की ऐसी बहुधा आदत थी कि वह अपनी पतोहू को अपने यहाँ नौकरी नहीं दूंगा और किसी राज्य के जिम्मे राज-काजा सौंप कर बाहर चले जाते थे, से वृटिश-सरकार की आज्ञा बिना लड़ाई अथवा इसमें संशय नहीं कि यह उसी के कारण था जो सन्धि नहीं करूँगा। सन्धि के बाद अंग्रेजी सेना अहल्याबाई ने इतनी योग्यता राजनीति में प्राप्त कर पेशवा को लेकर पूना पहुँची और उसे फिर गद्दी पर ली थी । उसके समय लेखों द्वारा पता चलता बिठा दिया। अमृतराव जिसे होल्कर ने पेशवा कि वह प्रत्येक छोटे और बड़े कार्य को स्वयं बनाया था, सामना न कर सका और पेंशन से सन्तुष्ट होकर बनारस चला गया। देखती थी। काशीराव ( १७६७-६८)- इस सन्धि से सिंधिया और भोंसला मरहठों की होल्कर भी १५ अगस्त सन् १७६७ ई० को बेइज्जती समझ कर बहुत नाराज हुए जिसके कारण परलोक सिधारा। मरहठों की दूसरी लड़ाई १८०३ में हुई । १८०४ ई० में जसवन्तराव होल्कर ने जयपुर-राज्य पर चढ़ाई काशीराव बड़े पुत्र होने के कारण गद्दी का की और लूट मार करना आरम्भ किया। वेलेजली हक़दार था और तुको जी यही चाहता था, किन्तु इसको बरदाश्त न कर सका और उसने लड़ाई की आपस में तै न हो सका और काशीराव और मल्हार- तैयारी शुरू कर दी। राजा भरतपुर की सहायता से राव में छिड़ गई । मल्हारराव की मदद पेशवा कर होल्कर ने दिल्ली लेने की चेष्टा की, परन्तु उसे रहा था और काशीराव की सहायता में सिंधिया अंग्रेज सैनिकों ने पीछे हटा दिया । १३ नवम्बर सन् लगा हुआ था। इस समय लार्ड वेलेजली भारत १८०४ ई० को डीग के पास, होल्कर के साथ लड़ाई में था । जसवन्तराव ने तमाम लूट मार करना हुई जिसमें लार्ड लेक ने उसे पराजित किया । लार्ड आरम्भ कर दिया था । दुर्भाग्यवश मार्च सन् कार्नवालिस मरहठों से लड़ना नहीं चाहता था। १८०० ई) में सुप्रसिद्ध राजनीतिज्ञ नाना फड़नवीस इसीलिये उसने सन्धि करनी चाही ; किन्तु उसकी की मृत्यु होगई, नाना के मरते ही महाराष्ट्र-मंडल मृत्यु हो गई। उसके पश्चात् जब सर जार्ज वार्ली में खलबली मच गई। आये तो उन्होंने होल्कर इत्यादि से सन्धि कर ली। जसवन्तराव के बाद १८११ ई. में मल्हारराव दौलतराव सिंधिया और जसतन्तराव होल्कर द्वितीय राजगद्दी पर बैठा । उसने १८३३ तक राज्य दोनों मरहठों में अग्रसर बनने की कोशिश किया, उसके बाद मारतण्डराव ने १८३३-३४ तक कर रहे थे। दोनों ही पूना पर अपना राज किया फिर १८३४ से १८४३ तक हरीराव ने अधिकार स्थापित करना चाहते थे। पेशवा राज्य किया। बादमें खण्डे राव ने एक साल तक बाजीराव द्वितीय निकम्मा आदमी था। होल्कर राज्य किया उसके बाद तुकोजी राव द्वितीय गही ने एक बड़ी सेना लेकर पूना पर चढ़ाई. की । जसवन्तराव- पर बैठे।
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