मारा गया था। गया। 0 ६२ भूगोल [ वर्ष १६ और दृढ़ था। उनकी बहादुरी की गणना नहीं की साथ जाटों और रुहेलों के विरुद्ध युद्ध में दिया । जा सकती, क्योंकि वे एक जंगली समय में मरहठों के और नजीबुद्दौला का साथ सिंधिया के विरुद्ध दिया। सरदार बन गये। वे बड़े ही उदार थे। जब कभी वे इसी समय १८ नवम्बर सन् १७७२ ई० में माधो- किसी सिपाही की बहादुरी से प्रसन्न होते तो कहते राव पेशवा मर गया और उसके बाद ही उसका थे कि उसकी ढाल रुपयों से भर दी जाय । पुत्र नारायणराव भी ३० अगस्त सन् १७७३ ई० मल्हारराव के केवल एक पुत्र ( खाँडेराव ) था। को मार डाला गया । इसलिये उनके चचा रघुनाथ- वह भी १७५४ ई० में (जब रघुनाथराव दत्ताजी राव पेशवा बने। सिंधिया राजपूताना गये थे ) कुम्भेर के किले पर पेशवा की गद्दी के बारे में झगड़ा हो रहा था। पहले तो होल्कर रघुनाथराव की सहायता खाँडेराव की शादी अहल्याबाई सिंधिया से नहीं करना चाहता था, फिर १७७८ ई० में उसने हुई थी जिससे एक पुत्र और एक पुत्री उत्पन्न हुए। साथ दिया । फिर जब सिंधिया ने ६ लाख पुत्र का नाम मालेराव और पुत्री का मुक्ताबाई रुपये दिये तो वह नाना फड़नवीस की ओर हो था। मुक्ता का व्याह जसवन्तराव फान्से से हुआ था। मालेराव गद्दी पर बैठा, किन्तु साल भर बाद १७८५ ई० में तुकोजी टीपू के विरुद्ध गणेश पन्त का साथ देने के लिए भेजा गया। लड़ाई के समाप्त ही वह मर गया। उसके बाद अहल्याबाई गद्दी पर बैठी होने पर तुकोजी महेश्वर को अहल्याबाई की भेंट करने चला गया। १७८८ ई० में उसने महेश्वर छोड़ा अहल्याबाई : और अलीबहादुर के साथ सिंधिया का साथ देने के अहल्याबाई ने अपने पुत्र के जीवन तक राज्य लिए दिल्ली गया। का शासन ठीक रक्खा और स्वयं देखती रही। लेकिन अब वह समय आ गया था जब कि गंगाधर यशवन्त ने (जो मंत्री था ) सलाह दी कि होल्कर इस बात को समझने लगा कि सिंधिया की अब रानी किसी होल्कर वंश के लड़के को गोद अधिक ताकत बढ़ जाना उसके लिये बर्बादी का कारण ले ले, किन्तु वह राजी न हुई । रघुनाथराव और है तो वह उसके खिलाफ कार्रवाई करने लगा। कुछ महादाजी सिंधिया की राय को भी नहीं माना और समय तक होल्कर और सिंधिया की सेनाएं राज- स्वयं राज्य का प्रबन्ध अपने हाथों लिये रही। वह पूताने के राज्य में चौथ और सरदेशमुखी लेती रहीं, स्वयं सेना का नेतृत्व करती थी और इस प्रकार पर अब अधिक दिनों तक वे साथ न रह सके । इस लड़ाई के कार्यों को पूरा करती थी जो एक स्त्री समय महादाजी की राजनीति न होने के कारण जाति के लिये बहुत ही कठिन है । १७६३ ई० में दोनों सेनाओं में अजमेर के समीप तुकोजीराव होल्कर को उसने अपनी सेना का लाखेरी में मुठभेड़ होगई। होल्कर की हार हुई । इससे अगुवा बनाया जो किसी भाँति भीराज घराने से सिंधिया की ताकत बढ़ गई और फिर कभी भी सम्बन्ध नहीं रखता था । पेशवा ने भी तुकाजी को होल्कर ने सामना करने का इरादा नहीं किया । मान लिया। तुकोजी ने पेशवा को १५,६२,००० रु० १२ फरवरी सन् १७६४ ई० को महादाजी सिंधिया भेंट दिये जिसके बदले में उसे खिलअत मिली। की मृत्यु हो गई । इसलिये तुकोजी मरहठों के अगुवा इस प्रकार राज्य का काम अहल्या और तुकोजी हो गये । होल्कर ने करदला की लड़ाई में ढडरेन्स मिल कर ३० साल तक भली भाँति करते रहे । को परास्त किया, किन्तु यह युद्ध बिलकुल ही बेकार तुकोजी हमेंशा सभी खास कामों में अहल्याबाई की था। राय लिया करता था। १३ अगस्त सन् १७९५ को अहल्या बाई की १७६६ ई० में तुकोजी ने १५,००० घुड़सवारों मृत्यु होगई और राज्य की बागडोर तुकोजी के के साथ विसाजी किशन और राम चन्द्र गणेश का हाथ भागई।
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