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४८ अलवर यह पूर्वी राजपूताना में एक पहाड़ी राज्य है। बीच जब मुग़ल, मरहठे, और जाट आपस में लड़ यहां के राजा सूर्यवंशी हैं । और श्रीरामच द्र जी के रहे थे और जैपुर का राजा बालक था तो यहाँ के ज्येष्ठ पुत्र कुश के वंशज कहे जाते हैं। राजा उदय सर्दार ने स्वतन्त्रता प्राप्त की और वर्तमान राज्य के करन जी जैपर और अलवर दोनों ही राजवंशों के दक्षिणी भाग पर' अधिकार जमाया। १७७६ में पूर्वज थे। १७९१ में मरने से पहले राजा प्रताप सिंह भरनपुर के राजा को दुबैल जान यहाँ के गव गजा जी ने इस राज्य को बहुत कुछ बढ़ाया। उनके उत्तरा- ने अलवर नगर और किलों पर कब्जा जमाया । इस धिकारी ने सन १८०३ ई० में लार्ड लेक की बड़ी राजा के मरने पर बख्तावर सिंह राजा हुआ। बख्ता- सहायता की। १२०० में अलवर की फौज चीन में वर के समय में अलवर राज्य पर मरहठों ने आक्रमण लड़ने गई । बड़ी लड़ाई के समय में भी इस राज्य किया और राज्य को बर्बाद किया इसलिये १८०३ से ने ब्रिटिश साम्राज्य की रक्षा के लिये बहुत से रंगरूट १८०६ तक मरहठा युद्ध के समय में अलवर के राजा भरती किये। १९१९ में अफगानिस्तान और सीमाप्रान्त ने मरहठों के विरुद्ध अँग्रेज़ों का साथ दिया । लाम- की लड़ाई में फिर यहां की फौ न लड़ने गई । अलवर वाड़ी नामक स्थान पर अलवर से १७ मोल की दूरी का क्षेत्रफल ३१५८ वर्गमील और जन-संख्या पर युद्ध हुआ जहां सिन्धिया की सेना को लार्ड लेक ने ७,५०,००० है । इसकी आमदनी २२ लाख रु. है। भली भांति बर्बाद कर दिया। इसके पश्चात् अँग्रेज इसके उत्तर में गुरगाँव का जिनः, नाभा राज्य सरकार ने बर्तमान अलपर का उत्तरी भाग बख्तावर का बावल परगना और जयपुर राज्य का कोट को इनाम के तौर पर दिया जिससे राज्य की आय कासिम का परगना है। पूरब में भरतपुर राज्य व ७ लाख से १० लाख हो गई। गुरगाँव का जिला है. दक्षिण और पश्चिम में जैपुर १८०३ ई० में अलवर के राजा ने अंग्रेज सर- राज्य है। कार से संधि की जिसके अनुसार यह तै हुश्रा कि यहाँ की मुल्य जाति “मेरो" है। राजपूत अलवर गज्य अँग्रेज़ सरकार को कुछ कर न देगा यद्यपि राज्य करने वाली जाति है तो भी यह जाति वरन् जब कभी भी अंग्रेजों को आवश्यकता होगी तो सारी जनसंख्या का बीसौँ भाग है। अलवर राज्य अंग्रेजी सेना का साथ देगा। १८११ राज्य के भीतर समानान्तर पहाड़ी श्रेणियों में फिर एक दूसरी संधि हुई जिससे अलवर राजा उत्तर से दक्षिण को फैली हुई हैं। साबो, रूपरेल, को साफ २ मना कर दिया गया कि वह दूसरे राज्यों चुहरसिद्ध ओर लिन्दवा नदियाँ हैं । साबी में अलवर के विरुद्ध कोई कार्रवाई न करें । किन्तु फिर भी के समीप रेल का सुन्दर पुल है । १८१२ में अलवर ने धोबी और सिकवारा दो किले राज्य में स्लेट, सँगमरमर, स्लेट के रंग का बलुवा जो जैपुर के थे ले लिये । अंग्रेजों ने मना किया किन्तु पत्थर, काले और लाल पत्थर, लोहा, ताँबा, सीमा अलवर राज्य के न मानने पर सेना भेजी गई। और पोटाश श्रादि वस्तुएँ पहाड़ियों पर अलवर के जिसके पहुँचने पर राजा ने किलों की वापस दे दिया। समीप ही पाई जाती हैं। राज्य में प्रत्येक भाँति के बख्तावर के मरने पर बेनीसिंह और बलवन्त सिंह शिकार मौजूद हैं। दो हकार हुये और राजगद्दी के बारे में झगड़ा हुआ पहले यह एक छोटा सा ताल्लुका था और किन्तु १८४५ में बलवन्त सिंह का औलाद मरा और जैपुर तथा भरतपुर राज्यों के अधीन था। वर्तमान बेनी सिंह भी १८५७ में मर गया। घराने की नींव डालने वाला प्रतापसिंह नरूका राजपूत बेनी सिंह के बाद सिउदान सिंह गद्दी पर बैठे। था। जिसके पास पहले पहल केवल ढाई गाँव थे इनके समय में राज्य में बड़ी गड़बड़ी रही । १८५४ जिनमें मचेरी गाँव भी था। १७७१. और १७७६ के में सिउदान की मृत्यु हो गई और कोई राज्य का.