सरकार ४६ भूगोल [वर्ष १६ दक्षिण में पालनपुर और ईदर और दाँता के मही- बादशाह के यहां से भाग कर आप और राजा से कांत राज्य हैं। पूर्व में मेवाड़ या उदयपुर और श्राज्ञा लेकर आबू पर्वत पर अचलगढ़ नामक किले पश्चिम में जोधपुर राज्य है। में जा छिपे । जब मुगल सेना चली गई तो सेन्समल श्राबू पर्वत राज्य में दक्षिण-पश्चिम से उत्तर ने राजा को कहला भेजा कि वह अपने राज्य में पूर्व तक फैला हुआ है और राज्य को लगभग दो चला जाय । किन्तु राजा ने उसे सुरक्षित जान कर बराबर भागों में बाँट देता है । पश्चिमी भाग अधिक छोड़ने से इनकार किया। अन्त में राजा सेना द्वारा खुला और बराबर है। यह भाग अधिक बसा है और निकाला गया किन्तु उसी समय से १८३६ तक फिर यहाँ को भूमि भी अधिक उपजाऊ है । राज्य में कोई भी राजा वहाँ जाने नहीं पाया । ५८३६ में कर्नल बहुत से छोटे छोटे नदी नाले पाए जाते हैं । अरावली पर्स एजेन्ट के समय में महाराजा जीवन सिंह पर्वत के निचले ढाल और आबू पर्वत के ढाल में उदयपुर के राजा को वहां तीर्थ मात्र करने की आज्ञा जंगल है जहां बॉस, तेंदू, धौ, खैर, जामुन, और बैर दी गई। तब से रोक उठा ली गई है और अब के बन पाए जाते हैं। यहाँ छोटी छोटी झाड़ियाँ भी राजपूताना के राजे वहां घूमने को जा सकते हैं, पाई जाती हैं। यहाँ की मुख्य नदी पश्चिमी बानास उन्नीसवीं सदी के प्रारम्भ में सिरोही और जोधपुर है । जो गर्मियों में सूख जाती है और जहाँ तहाँ राज्य के बीच बहुत सी लड़ाइयां हुई । सिरोही राज्य केवल तालाब रह जाते हैं । यहाँ के जङ्गलों में शेर, बहुत ही दुर्बल होगया और अपने को सुरक्षित रखने के रीछ, तेंदुआ, साभर, हिरन आदि जानवर पाए लायक न रहा तो १८१७ में राव शिव सिंह ने ब्रिटिश जाते हैं। से सहायता मांगी । उस समय कर्नल टाड संक्षिप्त इतिहास एजेन्ट था उसने जोधपुर और सिरोही राज्यों के वर्तमान राजे चौहान वंश के देवरा राजपूत हैं । इतिहास की अच्छी खोज की । उसके बाद सिरोही यह लोग पृथ्वीराज के वंशज देवराज के वश के में एक संधि सिरोही राज्य और ब्रिटिश सरकार के को जोधपुर को परतंत्रता से अलग किया । १८२३ ई. प्राचीन निवासी भीला हैं। उसके बाद गिदलोरा राजपूत यहाँ आकर बसे । इसके बीच हुई। जिसके बाद सारे झगड़े शांत हो गए। पश्चात् परमार राजपूत आए और उन्होंने चन्द्रवतो १८५७ के ग़दर में गव शिव सिंह ने अंग्रेजों का को अपनी राजधानी बनाया । ११५२ ई० के लगभग अच्छा साथ दिया। उसके बदले में कर घटा कर चौहान यहाँ आए और उनसे परमार राजपूतों ६८८ पौंड कर दिया गया । १८४५ में सिरोही महाराज से बड़ी लड़ाई हुई । अंत में चौहान यहाँ के गजा आबू पर्वत पर कुछ भूमि सैनिटोरियम बनाने के हुए । परमार लोग हार कर श्राबू के किलों में जा लिये अँग्रेजों को दी। महाराज केशरी सिंह को १५ बसे । इस पर चौहान राजपूतों ने उनके साथ चाल- तोपों की सलामो दी जाती है और गोद लेने की बाजी की और कहा कि वे अपनी पुत्रियों का ब्याह सनद प्राप्त है। उनके यहाँ करदें। परमार इसपर राजी हो गए । वे राज्य में खरीफ और रबी दो फसलें होती हैं। १२ लड़कियों का डोला लेकर नीचे आए किन्तु चौहान खरीफ में बाजरा, मूंग, उर्द, तिल, मोथो, कुलथी, उनपर टूट पड़े और अधिकांश को मारडाला और कपास, सन आदि उगाए जाते हैं । रबी में जौ, गेहूँ, आबू पर अपना अधिकार जमाया अब तक बचे हुये चना, सरसों, अल्सी इत्यादि पैदा होते हैं । परमार वहीं आबू पर रहते हैं अपनी पुत्रियों को राज्य की आय १०,०५,००० रु० सालाना है । पर्वत के नीचे नहीं आने देते । वर्तमान नरेश हिज़ हाईनेस महाराजाधिराज लगभग १४२५ ई० में जब सेन्समल राज्य करता महाराव सर सरूपराम सिंह बहादुर जी० सी० आई० था तो उस समय राना कुम्ब जी चित्तौड़ के मुगल ई० के० सी० एस० आई० हैं। o हैं । इस राज्य
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