अङ्क १-४] गजपूताना ३९ धाक जमी रही । रानासांगा के समय में मेवाड़ समय में चित्तौड़ हाथ से निकल गया। चार साल उन्नति के शिखर पर था। उस समय इस राज्य का बाद राना की मृत्यु हो गई। विस्तार उत्तर में पीलाखाल (बमाना के समीप ) १५७२ ई० में महाराना प्रताप सिंह गही पर तक पूर्व में सिंध नदी, दक्षिण में मालवा और बैठे। यह अकबर बादशाह के समकालीन थे। पश्चिम में बड़ी बड़ी पहाड़ियां थीं। इस प्रकार महागना की कई लड़ाइयों में हार हुई जिससे राजपूताना के अधिकांश भाग पर साँगा का अधिकार उनकी दशा बड़ी खराब हो गई किन्तु उन्होंने दृढ़ संकल्प कर लिया था कि वे यवनों के श्राधीन न होंगे और न उन्हें डोला ही देंगे। ईश्वर की कृपा से भाम शाह ने रुपय स राना रपा की पद्मिनी का महल । जिसके कारण अलाउद्दीन ने चित्तौड पर आक्रमण किया था। सहायता की तो राणा के दिन लौटे और अकबर की सारी ताकत लगाने पर भी थोड़े समय में महा- उदयपुर के राना भीमसिंह जी। इन्हीं पर अलाउद्दीन राना ने लगभग सारा मेवाड़ राज्य वापस ले लिया खिलजी ने आक्रमण किया था। और अपने जीवन भर आराम से रहे । उनकी मृत्यु के बाद अमरसिंह गद्दी पर बैठे। अकबर के शासन- था। जब बाबर भारत में आया तो इब्राहीम लोदी काल तक राना अमर तो चैन से रहे किन्तु उनको के बाद उसे साँगा से मुकाबिला करना पड़ा। माँगा मृत्यु के बाद जहाँगोर ने मेवाड़ को अपने श्राधीन का मुकाबिला अामान न था । किन्तु अंत में बमाना कर लेने की दृढ़ प्रतिज्ञा कर ली। इस कार्य में के स्थान पर १५ मार्च १५२७ को गना को पीछे जहाँगोर ने धोखेबाजी से भी काम लिया तो भी हटना पड़ा। गना अपनी गजधानी लौट कर मारे उसकी राना के हाथों कई बार हार हुई । अंत में १६१३ शर्म के नहीं गया। थोड़े दिनों पश्चात् राना की मृत्यु में राना अमर ने पराधीनता तो स्वीकार कर लिया हो गई और ज्येष्ठ पुत्र करन गद्दी पर बैठे । इसके किन्तु १६१६ में उसने अपने पुत्र करन के हाथों में बाद राना उदय सिंह ( साँगा के छोटे पुत्र ) गद्दी राजकाज सौंप दिया और आप अलग हो गया । पर बैठे। जब गना से यवनों ने राजधानो ले ली शाहजहाँ के समय में राजपूत आराम से रहे तो राना अरावली पर्वत पर चला गया और वहाँ क्योंकि शाहजहाँ की माँ एक राजपूत कन्या थी और उसने अपने नाम पर उदयपुर नगरी बसाई और उसका शाहजहाँ पर काफी प्रभाव पड़ा । किन्तु इसी को मेघाड़ को राजधानी बनाया। उदय सिंह के औरंगजेब ने हिन्दुओं पर जजिया ( कर ) लगाया ।
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