अङ्क १-१ ग्वालियर राज्य SACIAS IT ग्वालियर-पत्थर की कारीगरी का दूसरा नमूना में पड़ते हैं ग्वालियर झाँसी सड़क के ३३ मोल इस दरवाजों और पत्थर के पर्दा में होकर २० फुट नीचे राज्य में हैं। गिरता है। पुरातत्य-इस गज्य के कई स्थानों में पुराने ग्वालियर का संक्षिप्त इतिहास ममय के भग्नावशेष मिलते हैं। सबसे पुराना और प्रसिद्ध उज्जैन है। पर इसका इतिहास नाच दबा पड़ा ग्वालियर नाम गोपगिरि या गोपार्टि से बिगड़कर है। इसको जानने के लिये खुदाई की ज़रूरत है। बना है। जिस पहाड़ी पर प्राचीन शहर बमाया गया भिलामा में भी बहुत पुराने भग्नावशेष हैं। उदयगिरि था वह उत्तरी मिरे पर मैदान के ऊपर ३४२ फुट में अब से लगभग दो हजार वर्ष के पुराने बौद्ध और ऊँची उठो हुई । यह पहाड़ी डेढ़ मील लम्बी और हिन्द भग्नावशेष हैं। वाब में बड़े सुन्दर बौद्ध विहार २०० गज़ चौड़ा है। यह पहाड़ी एक अमर पहरेदार चट्टानों के भीतर खुद हैं। मध्यकालीन हिन्दू और के रूप में घाटी और मैदान की चोकमी करती है। जैन भग्नावशेष बारों. ग्वालियर, ग्वारमपुर नगद इम पहाड़ी के ऊपर बलुआ पत्थर की विशाल चट्टान और उदयपुर में मिलते हैं। मुसलमानी भग्नावशेष हैं। इनके बीच बीच में नुकीली चोटियाँ निकली हुई चन्दरी. मन्दसार, नम्वर, गोहद और ग्वालियर में हैं जो किल की प्राकृतिक दीवार बनाती है। पर भिनते हैं । कुटबर या कुभन्तपुर, पराली. परावाली प्रारम्भ में इस एकान्त स्थान में योगी रहते थे। राज्यपुर, तेराही, कँडवाह, दुवकंड, सुहानिया में उनको गुफायें अब तक मौजूद हैं। अब से लगभग पुराने भग्नावशेष हैं। उज्जैन शहर से पाँच मील २०० वर्ष पूर्व राजा सौर्यसेन ने किल की दीवारें • उत्तर को पार सिप्रा नदो की तलो में एक अद्भुत बनवाई। आगे चलकर यहाँ पहल कछवाह फिर महल बना हुआ है । नदी का पानी महल के चौहान राजपूतों का अधिकार रहा । इसके बाद यहाँ
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