१६८ भूगोल [वर्ष १६ खाँ के पुत्र ( बालक) अहमद को गद्दी पर बैठाने को। रुहेलखण्ड में भी गड़बड़ी फैली। रामपुर के पठान भेजी गई । रुहेलों ने न तो अंग्रेजों की बात मानी अपने रिश्तेदारों से जो बिजनौर, बरैली और और न नवाव अवध की । इस पर बिठूर नामक मुरादाबाद में थे । छिपे छिपे विद्रोह 'सम्बन्धी लिखा स्थान पर युद्ध हुआ जिससे रुहेलों की हार हुई। पढ़ी कर रहे थे । नवाब की दशा बड़ी सोचनीय थी अहमद अली खां नवाब बनाया गया । गुलाम किन्तु फिर भो नवाब ने मुस्तैदी से काम लिया और मोहम्मद मक्का चला गया। वहां उसकी मृत्यु हो हर प्रकार से अंग्रेजों की सहायता करता रहा। नवाब ने बड़ी चतुरता से काम लिया। और अपने एक संधि हुई जिसके अनुसार १० लाख मुनाफे आदमियों को लखनऊ, दिल्ली और बरेली के बीच की जायदाद छोड़ कर बाकी नवाब अवध के हाथ डाकियों के कार्य में लगा दिया जिससे बागियों के चली गई । नवाब फैजउल्ला खाँ के खजाने का बाकी सारे हाल मालूम होते रहें और फिर वह सारे हाल रुपया नवाब ने अंग्रेजों को देने का बचन दिया । बड़ी होशियारी से गुप्तचरों द्वारा अंग्रेजों को भी नवाब अवध ने फैज उल्ला के घराने के लोगों को पहुंचाता रहा । माफ कर दिया। नवाब ने दारुल ईशा नामक एक दफ्तर खोला लगभग ४० साल राज्य करने के पश्चात् १८४० जहां पर सारा काम बगावत के समय का होता था। में नवाब अहमद अली खाँ की मृत्यु हो गई । नवाब वहीं पर हर प्रकार की खबरें आती थीं और उनका अपने दया धर्म, बहादुरी और परोपकार के कारण प्रबन्ध भी किया जाता था। इसके प्रबन्धकर्ता मुन्शी अपने राज्य में बड़ा प्रसिद्ध था। सिलचन्द थे। नवाब के कोई लड़का न था । इसलिये गुलाम नवाब की सेवाओं की अंग्रेज अफसरों और मोहम्मद खाँ के बड़े पुत्र मोहम्मद सइयद खाँ का कार्य कर्ताओं ने बड़ी तारीफ की जिसके बदले नाम मिस्टर राविन्सन कमिश्नर रुहेलखण्ड ने पेश सरकार ने १,२८,५२७ रु० ४ आना सालाना की प्राम- किया । मोहम्मद सईद खाँ बदायूँ के डिप्टी कलक्टर दनी का इलाका और २०,००० रु० को पोशाक नवाब थे । लार्ड बैटिंग ने यह बात मान ली और २० को दिया। नवाब को फरजन्द दिलपजीर की पदवी अगस्त सन् १८४० को नवाब मोहम्मद सय्यद खाँ भी मिली । १८६१ में नवाब नाइट कमान्डर और गद्दी पर बैठे । आपने मालगुजारी के कानून और लार्ड एलगिन के कौंसिल के मेम्बर बनाये गये। अदालतों में सुधार किया तथा सेना का संगठन २१ अप्रैल सन् १८६५ ई० को नवाब की मृत्यु किया । किसानों की दशा काफी सुधर गई थी। हो गई। नवाब स्वयं एक अच्छा सैनिक और विद्यार्थी था। उसके बाद नवाब क़ालिब अली खाँ गद्दी पर बैठे। पहली अप्रैल १८५५ को नवाब की अचानक मृत्यु यह भी लार्ड लारेन्स की कौंसिल के मेम्बर बनाए हो गई। गए । नवाब अर्बी और फार्सी के बड़े भारी विद्वान नवाब मोहम्मद सईद खाँ को उसके जीवन में ही थे । १८७२ में नवाब मक्का गये उनकी गैरहाजिरी अपने पुत्र को अपने बाद नवाब बनाने का अधिकार में उस्मान खों राज प्रबन्ध करते रहे । १८७५ में प्राप्त हो चुका था। इसलिये ज्येष्ठ पुत्र नवाब ईसुफ आगरा, में नवाब ने अष्टम एडवर्ड से भेंट की। मोहम्मद अली खाँ गद्दी पर बैठे। आप भी पिता और नाइट मैन्ड कमान्डर की उपाधि तथा १५ की भांति एक अच्छे शासक साबित हुए किन्तु आप तोपों की सालामी का हुक्मनामा मिला । २३ मार्च आपने पिता से भी राजनीति क्षेत्र में बढ़ चढ़ गये। १८८७ को नबाब की मृत्यु हुई और नवाब 'मुश्ताक १८५७ के विप्लव काल में आपने अपने राज्य का ही अली खाँ गद्दी पर बैठे। इनका स्वास्थ्य अच्छा न प्रबन्ध नहीं किया वरन् मुरादाबाद जिले का भी रहता था। जिसके कारण इनके समय में कोई विशेष चार्ज ले लिया था। बात नहीं हुई । १८८९ में इनकी मृत्यु हो गई और १८५७ में सारे भारतवर्ष में बगावत फैल गई। नवाब मोहम्मद हमीद अली खाँ बहादुर गद्दी पर
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