भूगोल [वर्ष १६ ईख की उपज होती है। सिंचाई के लिये राज्य में के लिये देहात में गांवों के बाजार लगा करते हैं जहाँ काफी संख्या में नहरें हैं। कोसी, बहिल्ला, घूग, लोग बाजार के दिनों में जाकर आवश्यक सामान राजपुरनी, भकरा, केमरी और नहल आदि नहरें खरीद लेते हैं। इस के अलावा राज्य के भीतर बहुत हैं । इन के अलावा कुवों और तालाबों से भी सिंचाई से मेले भी लगते हैं, जिनमें ईद और मोहर्रम के मेले का काम होता है। मुसलमानों के प्रसिद्ध हैं और रतौंध का मेला हिन्दू, मुसलमान, ईसाई, राजपूत, जाट आदि हिन्दुओं का प्रसिद्ध है। इस मेले में राज्य के बाहर जातियाँ राज्य में पाई जाती हैं। राज्य के ६२ फी के लोग भी आते हैं और बहुत बड़ी भीड़ लगती है । सदी लोग खेतो का व्यवसाय करते हैं। ६८ प्रतिशत लोग ऐसे हैं जो घरेलू रोजगार और धंधों में लगे इतिहास हैं । बाकी लोग या तो मजदूर हैं । या राज्य के रुहेलखण्ड का प्रचीन नाम कठेर था । यहाँ कर्मचारी हैं। राज्य की भाषा उर्दू है, स्वयं नवाब क्षत्रियों का राज्य था जिसमें मुरादाबाद, सम्भल, बदायूँ, उर्दू के बड़े प्रेमी हैं। दरबार और अदालतों का नैनीताल, बरेली आदि प्रदेश शामिल थे। १२५३ काम उर्दू में ही होता है। लोगों की दशा रुहेलखंड में यहाँ नासिर उहीन का आक्रमण हुआ फिर १२६६ के दूसरे जिलों के निवासियों की भांति है। कुछ में गयास उद्दीन ने फिर हमला किया थोड़े समय के लोग अधिक गरीब हैं, जो केवल कमाते खाते हैं बाद बदायूँ, सम्भल, आउला में उपद्रव हो जाने के और साल में किसी न किसी समय उन्हें कर्ज लेकर कारण जलालउद्दीन फीरोज को १२९० में एक सेना अपना जीवन व्यतीत करना पड़ता है। मुसलमानी भेजनी पड़ी किन्तु राजपूत क्षत्रियों ने फिर अपना राज्य होते हुये भी हिन्दुओं के धार्मिक कार्यों में अधिकार जमा लिया १,३७९ में उन्होंने बदायूं के बाधा नहीं डाली जाती । सभी को अपने मतानुसार गवर्नर की हत्या कर डाला। इस समय हरसिंह अपने धर्म को मानने की स्वतंत्रता है। क्षत्रिय राजपूतों का सर्दार था। सड़कों और रेलवे लाइनों के खुल जाने से राज्य मुगल बादशाहों के समय में बदायूँ से केन्द्र का सम्बन्ध ब्रिटिश राज्य से और भी अधिक बढ़ हटाकर बरेली कर दिया गया । औरङ्गजेब की मृत्यु गया है, राज्य को इससे ब्यापार में बड़ी सुगमता के बाद हिन्दू राजा स्वतंत्र हो गये । इनके सिवा मिली है । गेहूँ, मक्का, चावल, गुड़, शक्कर, चमड़ा अफगान सर्दार भी एक बड़ी संख्या में जागीर दार श्रादि वस्तुएँ बाहर भेजी जाती हैं । चमड़ा कानपुर बने बैठे थे। इन अफगानों को लोग रुहेलों के नाम रवाना किया जाता है। ऊख का शिरा भी कानपुर से पुकारते थे । रुहेला का अर्थ है पहाड़ के ऊपर के जाता है । चावल का ब्यापार बड़े जोरों पर होता है। निवासी । मोहम्मद मोअपजम शाह के समय में दाऊद टांडा, केमरी, बिलासपुर नगरिया आदिल आदि खाँ अफगानिस्तान से भारत में आया और इस प्रान्त ऐसी जगहें हैं जहां चावल का बाजार बड़े जोरों पर में आकर डेरा जमाया। दाऊद एक बड़ा सूरमा है। राज्य में एक पोल्ट्री फार्म है। जहां से अण्डे था। उसने शीघ्र लबहुत से डाकू लोगों को अपना साथी और चिड़ियों के बच्चे एक अच्छी संख्या में बाहर बना लिया। इसी समय जब वह एक युद्ध में तो भेजे जाते हैं। कपड़ा कानपुर से और बिसात खाने का सैयद बंश के एक ६ वर्षीय बालक को उसने एक गाँव सामान और नमक कलकत्ता से मंगाया जाता है। में पाया । इसी को दाउद ने अपना लड़का बनाया एक बड़ी संख्या में दिल्ली और पंजाब से बकरियाँ और इसका नाम अली मोहम्मद खाँ रक्खा । आती हैं । रामपुर नगर में यह मुख्य भोजन का काम देती हैं। राज्य के अन्दर, तलवार, छुरी, चाकू, अलीमोहम्मद खाँ और बत्तीदार बन्दूक बनाई जाती हैं। किन्तु ये थोड़े समय के पश्चात् अलीमोहम्मद खाँ और वस्तुयें राज्य के बाहर नहीं जा सकतीं । केवल चाकू कमायूँ के राजा ने मिलकर दाऊद की हत्या कर और सरौते बाहर जाते हैं । देहात के लोगों के सुभीते डाली। यद्यपि अलो इस समय केवल चौदह साल
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