कच्छ - कच्छ एक देशी राज्य है और काठियावाड़ में उसी वंश के यहां के राजा भी हैं। सभी राजपूत स्थित है। इसके उत्तर में रन को झील या खाड़ी है। राना के सम्बन्धी कहलाते हैं। और सभी राजा को दक्षिण में हिन्द महासागर और कच्छ की खाड़ी कर देते हैं। ये लोग राजा को सम्मति देना अपना पश्चिम की ओर सिन्ध नदी की पूर्वी शाखाएँ हैं। प्राचीन कर्तव्य समझते हैं। इनकी जायदाद लड़कों में इस प्रकार कच्छ एक प्रायद्वीप है। यहां का क्षेत्रफल विभाजित हो जाती है । जदेजा राजपूतों का कहना है ७,६१६ वर्गमील और जन संख्या ४,८४,५४७ है। कि जब वे कच्छ में आये तो मुसलमान थे। बाद में कच्छ का भीतरी भाग पहाड़ी है । पहाड़ पूर्व से इन लोगों ने हिन्दुओं के रीत व रिवाज और धर्म को पश्चिम की ओर फैले हुये हैं। ऊँची नीची पहाड़ी ग्रहण कर लिया । इन लोगों के यहां अब भी मुस- चट्टाने राज्य के अधिकांश भाग को घेरे हुये हैं। लमानी रिवाज पाए जाते हैं । यह लोग पश्चिम राज्य के सारे प्रान्त में ज्वाला मुखी पर्वतों के चिन्ह भारतीयों से अधिक चतुर, योग्य, बहादुर, मजबूत पाये जाते हैं। गांवों के समीप की भूमि अच्छी है। और सुडौल होते हैं। यहाँ के शिल्पकारों की चतु. जहाँ गेहूँ, जौ, बाजरा दाल और कपास आदि की रता भुज नगर के महलों और मांडवो के राजमहल उपज होती है । पहाड़ी और बलुही भूमि होने के से भली भाँति प्रगट होती है । रेशम और सूती कपड़ों कारण खेती कम भाग में होती है। यहाँ का पानी पर चाँदी सोने का काम में यहाँ के कारीगर बड़े चतुर खारा है और कठिनता से प्राप्त होता हैं । यह पानी हैं। और बेल बूटे का काम बड़ा अच्छा होता है। निचली पहाड़ी श्रेणियों की तह में पाया जाता है। किनारे के रहने वाले अच्छे मल्लाह हैं । रन एक रेतीले प्रदेश के निवासी को पानी का बड़ाही कष्ट नमक के रेगिस्तान की भांति है यहां का क्षेत्रफल है। वर्षा का भी कोई ठिकाना नहीं है, कभी पानी ९ हजार वर्गमील है। कहा जाता है कि यह पहले बरसता है और कभी बिलकुल नहीं बरसता इसलिये समुद्र का एक भाग था। कुछ दैवी कारणों से यह बहुधा काल पड़ता है और प्लेग की बीमारी से भी समुद्र से अलग हो गया है । यहाँ काछी और गुज- इस प्रान्त को बड़ा भारी धक्का पहुँचाता है । राती भाषाओं का प्रयोग होता है । गरमी के दिनों में यहाँ गरमी पड़ती है । अप्रैल इतिहास और मई के महीनों में यहाँ बालू और गर्द के बड़े तेरहवीं सदी में सूम्मा जाति ने कच्छ पर हमला तूफान आते हैं । यहां आते २ मानसून बिलकुल सूख किया । इसी वंश में खेन्गाई आदि राजा हुये और जाता है। इसलिये यहाँ बहुधा पानी नहीं बरसता । उन्होंने १६९७ तक राज्य किया। फिर प्रागजी ने भुज यहाँ की राजधानी ५०० फुट ऊँची सी अपने भाई को मार कर राज्य ले लिया और उस भुज नामक पहाड़ी पर स्थित है। यहाँ पर बहुत वंश का राज्य १७६० तक रहा । राव घोद जो के छोटी २ नदियाँ हैं । जो बरसात के दिनों में भरी समय में चार बार सिंधी लोगों का आक्रमण हुआ। रहती हैं किन्तु और दिनों में बिलकुल सूख जाती फतेह मोहम्मद सिंधी ने १८१३ तक राज्य किया। हैं । वर्षा में यह सभी नदियां रनकी खाड़ी में गिरती इसी समय पहले पहल अँग्रेज सरकार से बात चीत हैं। इनके किनारे कुएँ और छोटी नदियां हैं जहां का प्रारम्भ हुई । इस समय पर प्राचीन मुख्य राज्य पानी नमकीन है। वंशज और राज्य पर जबरदस्ती अधिकार करने जदेजा राजपूत यहाँ के मुख्य निवासी जागीरदार वालों में झगड़ा पड़ गया । हँसराज. जो मॉडवी का हैं ये लोग अपने को कच्छ के राजा के खानदानी गर्वनर था और प्राचीन घराने का था उसने ब्रिटिश कहते हैं। और बतलाते हैं कि १ हजार वर्ष पहले सरकार से सहायता मांगी। हमारे पूर्वज सिन्ध प्रान्त के राजा थे। उसी वंश से फतेह मुहम्मद के कई पुत्र थे। हसन मियाँ
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