१३२ गरियासते ट्रावन्कोर राज्य यह मद्रास प्रेसीडेन्सी में एक देशी राज्य है। और इनके सिवा भी बहुत सी छोटी छोटी नदियां यह ८.४ से १.२२ उत्तरी अक्षांसों तक और ७.१२ हैं। किनारे किनारे झील हैं जो नहरों द्वारा मिली हैं से ७७ ३८ पूर्वी देशान्तरों तक फैला हुआ है । इसके और नावों के चलाने का काम देती हैं । उत्तर में कोचीन राज्य, पूर्व में मदूरा और टिने चावल, चाय, नारियल, काफी, मसाले, शहद, वली के जिले हैं और दक्षिण तथा पश्चिम में हिन्द मोम, मिर्चा श्रादि वस्तुओं की पैदावार होती है । यहाँ महासागर है । इस राज्य की लम्बाई १७८ मील और उत्तरो-पूर्वी और दक्षिणी-पश्चिमी दोनों मानसूनों से चौड़ाई ७५ मील है। इसका क्षेत्रफल ७६२५ वर्ग वर्षा होती है। साल में ८९ इञ्च वर्षा होती है । मील है। यहाँ की जनसंख्या ४००६०६२ है। यह इस राज्य का प्राचीन इतिहास प्रायः अज्ञात है राज्य १८,००,००० रु० सालाना ब्रिटिश सरकार को किन्तु कहानियों और कहावतों द्वारा पता चलता कर देता है । राज्य-शासन के ख्याल से राज्य को ३१ है कि परशुराम ने सारे मलयालम-तट को अपने ताल्लुकों में बाँट दिया गया है । त्रिनेन्दुरम यहाँ का अधिकार में कर लिया । उसके बाद नम्बूरिस मुख्य नगर और राजधानी है। नामक ब्राह्मण ने अपने अधिकार में ६८ वर्ष ईसा के ट्रावनकोर दक्षिणी भारतवर्ष का एक बहुत ही पूर्व नक रक्खा । तब ब्राह्मणों ने क्षत्रिय सरदारों को बड़ा रमणीक देश है। जो पर्वत इसको कारोमंडल बारह बारह साल के लिये राज्य करने को चुनना प्रारम्भ के किनारे से अलग करते हैं, वे ८००० फुट तक किया। यह रिवाज लगभग चार सौ सालों तक जारी ऊँचे हैं और सुन्दर बहुमूल्य बनों से ढके हैं । समतल रही। चीरामन पीरूमल ने राज्य को सरदारों में बांट मैदान में १० मील की एक नारियल और दूसरे दिया। फिर इरूमा वर्मा पीरूमल ने१६८७ से १७१७ पेड़ों की पट्टी है। ऊँची पहाड़ियाँ छोटी छोटी नीची तक और वांचों मार्तण्ड पीरूमल ने १७२९ से १७५८ पर्वत श्रेणियों में विभाजित हो गई हैं जिन पर तक राज्य किया। इसके पास काफी सेना थी। यह मन्दिर और चर्च बने हुए दिखाई पड़ते हैं। यह सेना योरोपीय ढंग पर तयार की गई थी और पहाड़ी प्रदेश भिन्न भिन्न भाँति के हैं । जहाँ भिन्न प्रकार पुर्तगीज, डच और इटैलियन अफसर इसका निरीक्षण की जलवायु पाई जाती है । और तरह तरह के वृक्ष करते थे। और जंगल पाए जाते हैं। सचमुच बहुत से स्थान ऐसे जब १७८६से १७९२ तक टीपू से और अंग्रेजों से हैं जिनका भली भांति निरीक्षण अब तक नहीं हुआ युद्ध हुआ तो ट्रावनकोर राज्य अंग्रेजों का साथी बना है। कुछ प्रदेश योरुपीय और देशी मालदारों को रहा । जब टीपू ने १७८८ में मालावार पर छापा मारा दिये गए हैं कि वह लोग उन स्थानों को उन्नति दें। तो राजा ने घबड़ाकर अंग्रेजों से मंधि कर ली और इसीलिए चाय और काफी की पैदावार दिन प्रति दिन सहायक सेना रख ली। यह सेनाएँ अभी राज्य में बढ़ती जा रही है। लगभग १०,००० एकड़ भूमि में पहुँच भी न पाई थी कि टीपू ने ऐकोटा और कोडंगलूर चाय और काफी की अच्छी पैदावार होती है। सब के किले पर अपना अधिकार बताते हुए ट्रावनकोर पर से अधिक ऊँची चोटी अनमल की है जो ८,८५७ फुट धावा किया किन्तु वह भगा दिया गया। उसी साल ऊँची है और दूसरी चोटियाँ ८२०० फुट ऊँची है। फिर उसने दोबारा आक्रमण किया किन्तु फिर वह हरा अधिक ऊंचे स्थानों पर चाय बहुत होती है, उसके नीचे कर बाहर निकाल दिया गया। १७९५ में राजा और वाले प्रदेशों में मिर्च, रबर, अदरक और मैसूर के पेड़ अंग्रेजों से दूसरी संधि हुई। इसके अनुसार टीपू हैं। दोनों स्थानों पर बहुमूल्य बन पाए जाते है। द्वारा छीने गए तीन जिले राजा को वापस दिए गए। यहां की मुख्य नदी पेरियर है । यह नदी लगभग जो सेना दी गई उसका खर्च राजा के जिम्मे रक्खा ६० मील तक नावों के चलने योग्य है । पाम्बई, गया। राजा से प्रतिज्ञा कराई गई कि राजा अन्य अधिनक्वाएल और कल्लद दूसरी प्रसिद्ध नदियाँ हैं। किसी योरोपीय जाति से संधि न करेगा और न
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