अङ्क १-४]] राजगढ़ १२५ जागीर लिख दी गई। सूरतसिंह के वंशज अभी लार्ड विलियम बैंटिंग के दरबार में हाजिर था। तक उस पर काबिज हैं। अमरसिंह के समय में ८५,००० चन्दौरी रुपये सालाना देकर उसने जयपुर के सवाई जयसिंह ने राजगढ़ पर हमला सिन्धिया से टालेन वापस करा लिया। सन् १८५५ किया । अमरसिंह नौ लाख रु० देने का वचन में रियासत की तरफ़ से २,५०० रुपया सागर-बम्बई दिया तो मवाई ने राजगढ़ का घेरा छोड़ सड़क बनाने के लिये दिया गया। दिया। पर अमरसिंह ६ लाख ही दे मका ग़दर के समय राजगढ़ दरबार ने किसी तरफ़ साथ बाकी ३ लाख के लिये अपने लड़के को गिरवी रख न दिया। विप्लवकारी५ लाख रुपया लूट ले गये । सन् दिया। यह देख कर राजगढ़ के एक जमींदार ने १८३७ में मोतीसिंह को ११ तोपों की सलामी मंजूर तीन लाख देकर राजकुमार को छुड़ा लिया। यह हुई। १८७० में वह बहुत सख्त बीमार पड़ा । एक राजकुमार अभयसिंह कुछ दिनों बाद अपने नौकरों मुसलमान फ़क़ीर ने उसे अच्छा कर दिया उसी के द्वारा मार डाला गया । उसके बाद नरपतसिंह और प्रभाव से वह मुसलमान होकर नवाब मुहम्मद नरपतसिंह के बाद उसका भाई जगतसिंह राजा अब्दुल वसीह खाँ कहलाने लगा। १८८० में नमक हुआ । जगतसिंह ने १७४७ से १७७५ तक राज्य पर से यातायात कर हटा लेने के बदले अंग्रेजी सर. किया । उसके दस लड़के थे। सब से बड़ा हमीरसिंह कार की ओर से ६६.८।।) सालाना मिलने लगा। राजा हुआ। बाक़ी ८ भाइयों को जिनके सन्तानें थीं, मोतीसिंह उर्फ अब्दुल वसीह खाँ के बाद उसका एक-एक गाँव की जागीरें दी गई। हमीरसिंह ने १५ बेटा बलवन्तसिंह और उसके बाद उसका बेटा वर्ष राज्य किया । आखिरी दिनों में मरहठों ने हमला बख्तावरसिंह गद्दी पर बैठा । उसने अपने पूर्वजों के किया और तीन लाख की माँग पेश की। हमीरसिंह रक्खे हुये मुसलमान नौकरों के साथ अच्छा बर्ताव के न दे सकने पर उसका पुत्र प्रतापसिंह पकड़ किया। उसके पुत्र बलभद्रसिंह ने राजा होने पर लिया गया। कोटा के राजा की जमानत पर प्रताप अफीम को छोड़ कर और सब चीजों पर से याता- सिंह छोड़ दिया गया और तभी से राजगढ़ सिन्धिया यात कर हटा दिया । लार्ड डफरिन के समय में उसे को कर देने लगा। प्रतापसिंह के दो वहिनें थों । एक रावत से राजा की पदवी मिली । उसने खिलचीपुर का विवाह उदयपुर और दूसरी का झाबुआ के राज तक सड़क बनवाई और सिहोर से वियाओरा तक घरानों में हुआ। प्रतापसिंह के बाद उसका बेटा सड़क बनवाने में दो लाख रुपये खर्च किये। उसकी पृथ्वीसिंह राजा हुआ। सिन्धिया का कर चढ़ गया के बाद सन् १६०२ में उसका चाचा बानसिंह था इसलिये सिन्धिया की फौज ने राजगढ़ पर कब्जा गद्दी पर बैठा । सिन्धिया के अलावा यह रियासत कर लिया, पर अपील करने पर और ६ लाख झालावार को लगभग ६००) रु० सालाना कालपीठ हर्जाना देने पर राजगढ़ वापस कर दिया गया। परगना के लिये देती है। पृथ्वीसिंह ने अपने भाई नवलसिंह को गोद लिया। राज्य का क्षेत्रफल १६२ वर्गमील और जन-संख्या इसने १५ वर्ष राज्य किया। सन् १८१८ में अंग्रेजी १,३४,८६१ है । राज्य की सालाना आय ६,५०,००० सेटलमेन्ट के समय टालेन और कुछ गाँव सिन्धियाँ रुपये है। को दे दिये गये। तभी से राजगढ़ और अंग्रेजी वर्तमान नरेश हिज हाईनेस राजा विक्रमादित्य राज्य का सीधा नाता जुड़ गया । सम् १८३१ में सिंह ( उमन राजपूत ) हैं। आपको ११ तोपों की नवलसिंह ने आत्महत्या कर ली। उसके बेटे रावत सलामी लगती है और आप चैम्बर ऑफ प्रिन्सेज मोतीसिंह ने ४८ वर्ष राज्य किया। वह सागर में के मेम्बर हैं। मृत्यु
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