सीतामऊ कुछ पेड़ हैं। सीतामऊ राज्य का क्षेत्रफल केवल २०२ वर्ग महेशदास के बाद रतनसिंह, रामसिंह और मील है। इसके उत्तर में ग्वालियर और इन्दौर, शिवसिंह राजा हुए । १६६५ में केशव दाम राजा दक्षिण में जाओरा और देवास, पूर्व में झालावार हुए। उन्होंने सीतामऊ को अपनी राजधानी बनाई, और पश्चिम में ग्वालियर राज्य है । कहा जाता है केशवदास के बाद गाजासिंह और फतेहसिंह राजा कि मीना सरदार सीताजी ने एक गांव बसाया हुए। १७५३ में महाराज दौलतराव सिंधिया ने था। उस गांव का नाम सीतामऊ हुआ। इसी से फतेह सिंह को उसके राज की सनद दी और राजा बिगड़ कर सीतामऊ नाम बना, जो इस समय इस फतेहसिंह ने ४१,५०० रु० ( सलीमशाही ) सालाना राज्य का नाम है। देने का वादा किया। सीतामऊ का पूरा राज्य मालवा पठार पर राजसिंह ( १८०२-६७)-- स्थित है। अधिकतर भाग लहरदार रेगर ( काली) मिट्टी का मैदान है। इसके बीच बीच में चपटी महाराज राज सिंह के समय में मरहठों ने बड़ा चोटी वाली छोटी छोटी पहाड़ियां उठी हुई हैं। उपद्रव मचाया और ६०००० रु० सालाना चौथ पहाड़ियों पर अर्द्धसूखी छोटी छोटी झाड़ियां और लेने लगे, यद्यपि सनद केवल ४२ हजार ही की थी। १८२० में जान मैलकम ने मामला त किया और सीतामऊ के राज को ६०,२०० रु० सालाना चौथ देनी चम्बल, शिव और सांसरी यहां की प्रधान नदियां पड़ी। किन्तु राजा अंग्रेजों का साथी बना लिया गया हैं। लेकिन इस राज्य में चम्बल और उसकी सहायक और मरहठों के उपद्रव की शङ्का जाती रही । नदियों शिव, सांसरी और सिप्रा की लंबाई केवल १८६० में राजा ने अपनी पुरानी सनद मरहठों के ३५ मील है। सामने पेश की जिससे उनकी मालाना चौथ में सीता मऊ राज्य के शासक राठौर राजपूत हैं। ५,००० रु० की माफ़ी मिली । १८५७ के विप्लव काल इस राज्य का प्रारंभिक इतिहास बहुत कुछ रतलाम में राजा अंग्रेजों का साथी बना रहा । इस दोस्ती राज्य से मिला हुआ है। के बदले में राजा को २,००० रु० की एक खिलअत रतलाम राज्य के शासक जोधपुर के महाराणा मिली । उदयसिंह के वंशज हैं। उदयसिंह के सातवें पुत्र १८८५ में राजा ने रेल आदि के लिये भूमि देना महेशदत्त १६३४ में शाही दर्बार में नौकर हुए । कुछ स्वीकार किया ।राजसिंह बड़ा ही चतुर, सुजान और समय के बाद महेशदास अपनी मां को लेकर दयालु राजा था । राजसिंह की मृत्यु के बाद भवानी नर्मदा नदी पर ओंकारनाथ के दर्शन को गए। सिंह गद्दी पर बैठा। उसके पश्चात् २८ मई सन् १८८५ मार्ग में सीतामऊ नामक गांव में वृद्धा माता बीमार को बहादुरसिंह गद्दी पर बैठे । इस समय सिंधिया पड़ीं और उनका स्वर्गवास होगया। महेश दास ने ने गद्दी पर बैठने का नजराना माँगा। इस पर अंग्रेज़ वहां के भूमिपति से भूमि मृतक संस्कार क्रिया के सरकार ने रोक डाली और कहा ऐसा नजराना लेने हेतु मांगी, किन्तु न मिली । इस पर उन्होंने छिपे तौर का केवल अंग्रेज सरकार को ही अधिकार है। अँग्रेज़ पर कुछ भूमि ली और वहां पर अपनी मां का मृतक सरकार ने कर को भी आधा अर्थात् ३५,००० रु० कर संस्कार किया और आक्रमण द्वारा सीतामऊ के दिया और ३५०० रु० की एक खिलअत राजा को दी। जमींदार से बदला लिया। १८८७ ई० में राजा ने महारानी के जुबली के अवसर १६
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