११५ पैदा हो गई। अङ्क १-४] चरखारी राज्य १८७४ में जैसिंह के हाथ राज-काज की बागडोर सौंप शासन प्रणाली- दी गई । राजा अच्छी बुद्धि का न था, साथ ही राजा कटर राजा मदारुल मुदाम (मंत्री) और नायब दीवान की सनातनधर्मी था। १८७७ में राजा दिल्ली असेम्बुलेज में सहायता से राज्य करता है। राज-काज में हिन्दी भाषा गये और वहाँ से वृन्दाबन पाए। यहीं बाकी जीवन राजा का प्रयोग होता है। उर्दू केवल फौजदारी के मामलों में ने समाप्त किया। इसी बीच राज्य के अन्दर काफी गड़बड़ी प्रयोग होती है। राज-काज के लिये मदारुल मोदामी, कोतवाली और माल में स्वास खास विभाग हैं, राज्य में २६ सवार, १८७६ ई. में कैप्टेन एफ० एच० मेटलैण्ड राज्य के १८१ पैदल और २४ बंदूकें हैं जिनको चलाने के लिये सुपरिन्टेन्डेन्ट बनाए गए । राजा के अधिकार कम कर दिये ८५ व्यक्ति नौकर रक्खे गये हैं। गए और दूसरे साल सभी अधिकार छीन लिये गए ।। राजनैतिक विभाग- मार्च सन् १८८० ई० को राजा जैसिंह ने धतूरे का फल खा राज्य चार परगनों में विभाजित है। (१) बावनचौरासी लिया। जिससे राजा की मृत्यु हो गई । परगना (२) ईसानगर का परगना (३) रानीपुर (४) सतवारा राजा जैसिंह के कोई वंश न था और न उन्होंने जीते का परगना । प्रत्येक परगना एक तहसीलदार के अधिकार में है जी किसी को गोद ही लिया था। उनकी विधवा रानी ने जो उसका प्रबन्ध करता है मलखान सिंह को गोद लिया। यह नाने-जुझारसिंह के राज्य के लोगों का व्यवसाय- पुत्र थे। गोद के समय इनकी अवस्था केवल : साल की यहाँ के लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती है। खरीफ़ थी। ब्रिटिश गवर्नमेन्ट ने गोद स्वीकार कर लिया। और में ज्वार, मकई और कोदों पैदा की जाती है। रबी में राज्य को एक अंग्रेज अफसर के सुपुर्द कर दिया। गेहूँ, चना और जो पैदा होते हैं। काकुन और साँवा की भी पैदावार होती है। १८८६ ई० में अँग्रेज अफ़सर वापस बुला लिया गया लगभग चालीस वर्ग मील में जंगल है। जंगलों में और राज्य बुन्देलखण्ड के अँग्रेज प्रतिनिधि के सुपुर्दगी में लोग जानवरों को चराते हैं। लकड़ी जलाने और मकान कर दिया गया। बनाने के काम आती है। जंगल में खैर, तेंदू , घोटहर, १८६४ में राजा को राज-काज सौंप दिया गया। ईगू, धव, सागौन, सलई, बॉस आदि पेड़ पाए जाते हैं। राव बहादुर दीवान जुझारसिंह जूदेव सी. आई. ई. खेरवा और कोंडर जाति जंगलों में रहती है और खैर, मिनिस्टर का कार्य करते हैं। १८६४ के बाद राज्य में बहुत मधु तथा और दूसरी वस्तुएँ जो जंगलों से प्राप्त होती से सुधार किए गए। सेटिलमेन्ट का कार्य हुआ, पुलीस का हैं उन्हीं का व्यवसाय करते हैं। सुधार हुआ और दूसरे प्रजा-कार्य हुए। १८६७-६८ में रानीपुर परगना में हीरे की स्त्रानें पाई जाती हैं। राज्य में अकाल पड़ा जिसका इन्तजाम राजा ने बड़ी चतुरता प्रजा को भी इन खानों के खोदने का अधिकार ,किन्तु प्रत्येक से किया। पाये हुये हीरे के मूल्य का चौथाई राजा को देना पड़ता १६०२ में राजा को के. सी. आई. ई. की उपाधि है। राज्य दार इन हीरों का मूल्य निर्णय करता है। मिली। दूसरे साल दिल्ली के शाही दरबार में राजा गए। आय और व्यय- १६०५ ई० में अब इन्दौर में शहजादा और शहज़ादी आई राज्य की आय ६,३०,००० रु. है जिसमें से १४६ तो आप भी गये थे। लाख राज्यशासन और राजा के ऊपर खर्च होता है। राजा की खानदानी पदवी हिज हाईनेस महाराजा ७६,००० फौज पर तथा ३७,००० मालगुजारी वसूल करने घिराज सिपह दारुलमुल्क है। और ग्यारह तोपों की में खर्च किया जाता है। राज्य की आर्थिक स्थिति अच्छी सलामी दगाई जाती है। है और किसी प्रकार का कर्ज नहीं । - -
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