भूगोल [ वर्ष १६ पैदा करके अपने वंश की स्थिति को सुधारना यता चाही। बाजीराव ने शीघ्र ही मांग पूरी की चाहा । इसी ध्येय को सामने रख कर क्षत्रसाल ने और १ लाख सवार सहायता पर भेजे । मोहम्मद जयपुर के 'मवाई जैसिंह की सेना में अपना नाम खां बंगश को मजबूर होकर जैतपुर किले में शरण लिखा लिया। किन्तु क्षत्रसाल को उनकी सूरत का लेनी पड़ी। ६ महीने तक किले का घेरा पड़ा। और बदला ठोक न मिला तो फिर उन्होंने नौकरी छोड़ ८०) रु० सेर तक बाटा बिक गया। अन्त में मोहम्मद दी और अपने पिना के व्यवसाय पर चलने की खां बंगश का पुत्र आया और बातचीत शुरू की । वह दृढ़ प्रतिज्ञा की। क्षत्रसाल के शरण आया तो उसकी जान बची। इस समय शिवाजी औरङ्गजेब के विपरीत इसके बाद ही क्षत्रसाल ने अपने राज्य के तीन कार्य कर रहे थे इसलिये क्षत्रसाल ने उनसे मिलने भाग कर दिये । बड़े पुत्र हृदयशाह को पन्ना, का प्रयत्न किया। शिवा जी तो यह पहले ही से चाहते कालिंजर और शाहगढ़ ३८ लाख की जायदाद थे, उन्होंने शीघ्र ही बात मान ली और अपनी मिली । दूसरे पुत्र जगतराज को ३३ लाख की तलवार क्षत्रसाल को दे दी। जागीर मिली जिसमें जैतपुर, अजयगढ़ और शीघ्र ही औरंगाबाद के वीर बल्देव के चरखारी राज्य हैं। पेशवा को झाँसी, सिरौंज, सागर राजा धरमंगद और दूसरे सरदार क्षत्रसाल के साथी और काल्पी ३६ लाख की जागीर मिली। बन गए । १७६१ ई० में छत्रसाल ने मालवा और साल की अवस्था में सन् १७३२ ई० में क्षत्र- बुंदेलखण्ड में लूट मार की और बहुत से स्थानों पर साल की मृत्यु हो गई। अब भी पन्ना, अजयगढ़, अपना कब्जा जमा लिया । सीराँज को क्षत्रसाल ने चरखारी, बिजावर, जासो, जिगनी, लुगासी और अपनी राजधानी बनाया। अब और दूसरे बुंदेले सरीला आदि राज्यों में क्षत्रसाल के वंश का राज्य सरदार भी साथी बन गए। मुग़ल सूबेदारों ने है। क्षत्रसाल की बढ़ती ताक़त रोकनी चाही, किन्तु क्षत्र- हृदयशाह (१७३२-३६)- साल ऐसे सूरमा के आगे उनकी दाल न गली और बड़ा पुत्र हृदयसिंह पन्ना का राजा हुआ । इसी उन्हें नीचा खाना पड़ा। थोड़े समय में ही क्षत्रसाल साल से पन्ना एक स्वतंत्र राज्य बना। १७३२ में सारे बुन्देलखण्ड का राजा बन गया और कालिंजर हृदय ने रीवा पर हमला किया और १७३६ में रीवा किले पर भी अपना अधिकार जमा लिया। नगर पर अधिकार जमा लिया । यहाँ उसने बुन्देला औरंगजेब इस समय दक्षिण की लड़ाइयों में फंसा दरवाजा बनवाया और रीवा राज्य के विरसिंहपुर था। उसे मरहठों और राजपूतों का भी सामना करना पर भी अधिकार जमाया जो अब भी पन्ना राज्य में था। ऐसी हालत में क्षत्रसाल बुन्देला बिलकुल स्वतंत्र अपना कार्य कर रहा था। क्षत्रसाल है ।माघ सुदी नौमी सन् १७६५ को हृदयशाह परलोक सिधारा । उसके आठ पुत्र और एक दोगला पुत्र बेतवा से टोंस तक और जमुना से जबलपुर तक था। अपना राज्य बढ़ा लिया । औरंग और मऊ महेवा में भुभागसिंह ( १७३६-५२)- रहकर अपना राज्यशासन करने लगा तो औरंगजेब को फिक्र हुई, किन्तु ४ मार्च १७०७ को उसकी मृत्यु ज्येष्ठ पुत्र सुभाग या सभासिंह राज्य का हो गई। मालिक हुआ। इसके समय में राज्य की अवनति बहादुरशाह ने क्षत्रसाल की बढ़ती दशा देख हुई। आषाढ़ बदी एकादशी संवत् १८०६ को उसकी कर १७२६ ई० में मुहम्मद खाँ बंगश और खां बंगश मृत्यु हो गई और उसका पुत्र अमानसिंह गद्दी पर गजनफर जंग की अध्यक्षता में ८०,००० सवार और बैठा। १०० हाथी भेजे । इस सेना ने जैतपुर का किला ले भमानसिंह ( १७५२-५८ )- लिया । क्षत्रसाल ने ऐसी सेना का अकेले मुकाबिला अमानसिंह के दो भाई हिन्दूपत और खेतसिंह करना अच्छा न जानकर बाजीराव पेशवा से सहा- थे। राज्य के बारे में झगड़ा छिड़ गया और चित्र-
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