पन्ना राज्य - - अङ्क १-४] १०६ राजा को इससे बड़ी पाय थी । १७५० ई० में गजा ओरछा की गद्दी पर बैठा दिया जिससे कठिनाइयों को चार लाख की आय हुई, किन्तु अब लगभग ६ का अन्त हो जाय । पहाड़सिंह ने चम्प तराय को या सात हजार सालाना की आय है। जो शाहजहाँ से मिला दिया और शाह ने खुशी खुशी हीरे ६ रत्ती से अधिक होते हैं वह राज्य के मित्रता कर ली और कुम्हार गढ़ का किला दे दिया। समझे जाते हैं। पानेवाले को केवल चौथाई किन्तु फिर भी चम्पतराय ने अपना कार्य न बन्द मिलता है। किन्तु ६ रत्ती से कमवाले हीरों में किया। इसलिये शाहजहाँ ने उसे किसी प्रकार पाने वाले को तीन चौथाई मिलता है और राज्य रास्ते से हटाना चाहा । चम्पतराय को विष को एक चौथाई मिलता है। प्रत्येक महीने इसका देने का भी यत्न किया गया, किन्तु निष्फल हुआ। नीलाम होता है। जव शाहजहाँ के पुत्रों में गद्दी के लिये झगड़ा इतिहास होने लगा तो चम्पतराय ने औरङ्गजेब की सहायता चम्पतराय उदय सिंह या उदय जीत के वंशज की। औरङ्गजेब स्वयं चम्पतराय की सहायता चाहता थे। उदय जीत राजा रुद्र प्रताप महाराज ओरछा के था क्योंकि दारा चम्बल के उत्तरी किनारे पर दृढ़ता तीसरे पुत्र थे । पिता की मृत्यु के पश्चात् महेवा की के साथ अपनी सेना सहित जमा था। औरङ्गजेब जागीर उदयजीत को मिली। उदयजीत के पुत्र ने चम्पतराय की सहायता से उसके राज्य से होकर प्रेमचन्द हुए। प्रेम से कुँअरसेन, कुंअरसेन से नदी के पार अपनी सेना उतार दी। २८ मई मानसिंह और भगवन्त राय हुए। भगवन्त राय से सन् १६५८ को सामूगढ़ के स्थान पर लड़ाई हुई कुलनन्दन, कुलनन्दन के चार पुत्र हुए जिनमें जिसमें दारा की हार हुई। औरङ्गजेब ने चम्पत- चम्पतराय सब से छोटे थे । राय से प्रसन्न होकर सभाकरन (राजा दतिया) चम्पतराय ने अपने माथियों को इकट्ठा करके का इलाक़ा चम्पतराय को दे दिया। सभाकरन मार-काट प्रारम्भ कर दिया। इन लोगों ने मुग़ल बिगड़ गया और उससे और चम्पतराय से ठन अफसरों और सेनाओं को भी परेशान किया। ये गई। चम्पतराय ने फिर अपना पुराना कार्य लोग किसानों को खेतों और गाँवों से निकाल बाहर लूटने-मारने का आरम्भ किया। कई एक लड़ाइयों करते थे। १६३६ में खान दौरान बहादुर नसरत जंग, के बाद अन्त में एक दिन नामदार स्वाँ ने उसे अब्दुल्ला खाँ, फीरोज़ जंग को साथ लेकर चम्पत घेर लिया। जब चम्पतराय ने बचने की आशा न राय के मुकाबले के लिये चला, किन्तु उसका परिश्रम देखी तो अपनी स्त्री से कहा कि वह उसे मार कर बेकार हुआ। चम्पतराय ने शाह की सेनाओं को पकड़े जाने बचा ले । रानी तो वीर क्षत्राणी थी हराया और अपने कब्जे में कई गाँव कर लिये। ही, पति की आज्ञा स्वीकार कर ली। रानी ने अपने १६३६ में जब पृथ्वीराज पकड़ा गया तो चम्पत पति की तलवार निकाल कर पहले अपने पतिदेव राय और उसके पुत्र बचकर निकल गए। उसके के हृदय में भोंका और फिर स्वयं अपने हृदय में बाद बाँकी खाँ भेजा गया। यद्यपि उसने धोका भोंक लिया। इस प्रकार इस वीर जोड़े का देकर सालिवाहन को मारना चाहा। किन्तु निष्फल अन्त हुआ। हुआ । इसी समय ज्येष्ठ सुदी तीज सम्बत् १७०७ चम्पतराय के सालिवाहन, अंगदराय, रतन को महाराज क्षत्रसाल का जन्म हुआ। सिंह, छत्रसाल और गोपाल पाँच पुत्र थे । सालि- चम्पतराय ने अब और अधिक बल के साथ वाहन १६५० में मारा जा चुका था। इस अपना कार्य प्रारम्भ किया। और मालवा, सिरोंज समय क्षत्रसाल की अवस्था केवल १३ साल को जीत लिया। उज्जैन के सूबेदार ने मुक़ाबिला की थी। करना चाहा किन्तु निष्फल हुआ। इस प्रकार छत्रसाल ( १६६२-१७३२)- चम्बल से टोंस तक चम्पतराय का राज्य बढ़ गया। समय अच्छा न देख कर क्षत्रसाल ने औरङ्गजेब अन्त काल शाहजहाँ ने पहाड़सिंह बुन्देला को से सन्धि करनी चाही और युद्धक्षेत्र में नामवरी
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