पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/८०

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राष्ट्रभाषा का नाम 'हिंदवी बेहतर है। और मुसलमानों की बोली के वास्ते 'हिंदोस्तानी' का नाम करार दे लिया है। खैर, यह जो कुछ भी हुआ, हिंदोस्तान की इस जदीद जवान की दो बड़ी और खास शास्त्रे ब्रिटिश इंडिया के बड़े हिस्से में बोली जाती हैं और शुमाल के मुसलमानों की जबान यानी हिंदोस्तानी उर्दू मुमा- लिक मगरवी व शुमाली की सरकारी जवान करार दी गई है। अगर च हिंदी भी उर्दू के साथ-साथ उसी तरह कायम है जैसे कि वह झारसी के साथ थी। वाला यह है कि मुसलमान बादशाह हमेशः एक हिंदी सिक्रेटरी, जो हिंदी-नवीस' कहलाता था और एक फारसी सिक्रेटरी जिसको वह झारसी-नवीस कहते थे, रखा करते थे ताकि उनके काम उन दोनों जवानों में लिले जायें। इसी तरह ब्रिटिश गवन मेंट मुमालिक मगरबी व शुमाली में हिंदू आबादी के सुझाद के लिये अक्सर औकात सरकारी भवानीन का उर्दू किताबों के साथ हिंदी तरजुमः भी देवनागरी हरूफ में देती है।" (खुतबात मासा द तासी; १८५२ ई० का व्याख्यान, पृ. १७-१८१) इस लंबे अवतरण से स्पष्ट हो गया होगा कि हमारी राष्ट्र- भापा का इतिहास क्या है और क्यों हमें उसका नाम 'हिंदी' ही पसंद करना चाहिए। साथ ही यह भी प्रत्यक्ष हो गया होगा कि उर्दू वालों के हिंदोस्तानी-प्रेम का रहस्य क्या है। क्यों वे

२-कंपनी के शासन में भी हिंदी-नबीस थे जिनका वेतन फारसी- नवीलों से कुछ कम था। श्राइन में इसका स्पष्ट उल्लेख है।