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भाषा का प्रशन
राष्ट्रभाषा की परंपरा


भारत की पतित दशा को देखकर किसी को इतना कहने का भी साहस नहीं होता कि भारत आज से नहीं, कल से नहीं, बल्कि न जाने कितने युगों से एकता के सूत्र में बंधा चला आ रहा है और फलतः आज भी प्रत्येक हिंदू प्रतिदिन और प्रति घड़ी 'संकल्प' में 'जंबूद्वीपे भरतखंडे' का उद्घोष करता तथा 'अभिषेक' में देश की समस्त पूत नदियों का नाम लेता है। इतना ही नहीं, अपितु अपने जीवन में कम से कम एक बार भारत-भ्रमण अथवा देश के संपूर्ण तीर्थों का अवगाहन एवं चारों धामी की यात्रा अपना परम धर्म समझता है। फिर भी प्रमाद अथवा व्यामोह-बश दावे के साथ यदि यह पटु घोषणा की जाती हैं कि इसलाम के पहले भारत में कभी राष्ट्रभावना का उदय अथवा एकता का संपादन न हुआ तो इसके लिये हमारे पाल दवा ही क्या हैं? किस प्रकार हम इस प्रकार के ज्ञान-