पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/६८

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. . राष्ट्रभाषा का नाम हिंदी-साहित्य-सम्मेलन की नागपुर की बैठक में एक अद्भुत बात यह निकल आई कि हमारी राष्ट्र-भाषा का नाम हिंदी या हिंदुस्तानी न रहकर 'हिंदी-हिंदुस्तानी हो गया और इसने धीरे- धीरे फिर हिंदी-उर्दू प्रश्न को उभार दिया । 'हिंदी-हिंदुस्तानी' का नामकरण यद्यपि नवीन न था तथापि उसके प्रयोग में आ जाने से संप्रदाय विशेष में बड़ी खलबली मची और इस बात की भरपूर चेष्टा की गई कि हिंदी-हिंदुस्तानी का रहस्य खोल दिया जाय । सच पूछिए तो हिंदी-हिंदुस्तानी' कोई भेद भरी बात नहीं है चल्कि उलझन से बचने का एक सहज उपाय है। इस उपाय को अमोघ अस्त्र समझना भारी भूल है। आज से बहुत पहले सन् १८०० ई० के लगभग डॉक्टर गिलक्रिस्ट ने भी इस अस्त्र से काम निकालना चाहा था पर वह सर्वथा निष्फल गया। उनकी 'हिंदी-हिंदुस्तानी' अथवा हिंदी-रेखता' का अर्थ समझा गया 'सलीस उर्दू'। वहीं सलीस उर्दू जिसे आज भी प्रमाद- वश कुछ लोग हिंदुस्तानी कहते हैं, किंतु महात्मा गांधी की हिंदी- हिंदुस्तानी' का अर्थ अब 'सलीस उदू' नहीं हो सकता। यह आशंका है कि कहीं वह ठेठ या गवाँरी हिंदी न बन जाय । इसी लिये हिंदी-हिंदुस्तानी' का प्रयोग उर्दू के लिये घातक तमन्ना जाता है और 'हिंदी का नाम भी असह्य हो गया है।