पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/४७

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भाषा का प्रश्न 3. देश के अनेक भागों में फैल गई थी; एवं (३) सहसा राजाश्रय को प्राप्त कर राजपूतों के साथ देश-देशांतर में प्रविष्ट हो जाना। अपभ्रंश भारत की लंपित राष्ट्रभाषा थी। व्यवहार में होने के कारण उसके अनेक देशभेद हो गए थे। इसी भेद के कारण रुद्रट ( ८५० ई० के लगभग) को लिखना पड़ा-- "प्राकृतसंस्कृतमागधपिशाचभाषाश्च शूरसेनी च । षष्ठोऽत्र भूरिभेदो देशविशेषादपभ्रंशः ॥" ( काव्यालंकार, २०१२) रुद्रट के 'भूरिभेदः' और 'देशविशेपान के संबंध में विद्वानों में गहरा मतभेद है। नमिसाधु ने इसकी टीका में लिखा है- "तथा प्राकृतमेवापभ्रंशः। स चान्यैरुपनागराभोरनाम्यत्वभेदेन निधोक्तस्तन्निरासार्थमुक्त भूरिभेद इति । कुतो देशविशेषात्कारंणात् । तस्य च लक्षणं लोकादेव सम्यगव सेयम् ।” नमिसाधु ने कहीं पर इस बात का उल्लेख नहीं किया कि 'उपनागराभीरग्राम्य' प्रभृति भेद किस व्यक्ति के किए हुए हैं। हाँ, इतना अवश्य कहा है कि उसी के खंडन के लिये रुद्रट ने 'भूरिभेद' का प्रयोग किया है। .. 'भूरिभेद' के कारण को व्यक्त करने के लिये 'देशविशेषात्' की आवश्यकता इसी लिये पड़ी कि उक्त निधोक्त भेद 'देशविशेष' पर अवलंवित न थे। उनके विभाजन का कारण देशगत रूप नहीं बल्कि कुछ और था। "उपनागर' और ग्राम्य में तो 'नगर' और 'ग्राम' का आधार है पर 'भाभीर' में प्रत्यक्ष ही जाति का संकेत है। आभीर का प्रयोग शायद 'आभीरादिगिरः' के इशारे पर कर दिया गया है। भाभीरी भाषा के प्रसंग में नमिसाधु ने उसी पद्यं की टीका में लिखा है-