पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/४४

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राष्ट्रभाषा की परंपरा "सास्वेव हि शुद्धामु जातिषु द्विजसत्तमाः । शौरसेनी समाश्रित्य भाषां काव्येषु योजयेत् ॥ (ना० शा० १७/४७) अस्तु, शकादिक पिशाचों ने शूरसेन को अपना प्रांत बना लिया। उनके संपर्क में आ जाने से शौरमेनी की शुद्धता जाती रही। उसमें भी कुछ पैशाची का मेल हो गया। आभीर, गुर्जर प्रभृति जातियों के जम जाने से शौरसेनी में जो विकार उत्पन्न हुए उन्हें लक्ष्य करके इस भ्रट भाषा का नाम अपभ्रष्ट पड़ा। यही अपभ्रष्ट भाषा आगे चलकर अवहट्ट के रूप में प्रचलित हुई। हूणों के परास्त हो जाने के उपरांत भारत कुछ काल के लिये आततायियों के आक्रमणां से सुरक्षित रहा। सिंध में मुसलिम भंडे के नीचे जो अरव-शासन स्थापित हो गया था उसका धीरे धीरे हास ही हो रहा था। गुप्तों के शासन में ब्रह्मण्य या हिंदुत्व को जो प्रोत्साहन मिला वह प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा था। १---कुवलयमालाकथा में, जिसकी रचना संवत् ८३५ वि० में हुई थी, कहा गया है :- "कपिलान् पिझलनयनान भोजनकथामात्रदत्तव्यापारान् कित्तो किम्मा जिता' जल्पकानथांतवैद्यांश्च (छाया, अपभ्रंशकाव्यत्रयी पृ १२ पर अवतरित )। शारोनी के प्रांत अंतर्वेद में उक्त लोग कहाँ से आ बसे थे और कौन थे, इसको शील पता लगाना चाहिए। संभव है, उससे भाषा के विवेचन में अच्छी सहायता मिले।