पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/३९

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भाषा का प्रश्न ३२ अपभ्रंश की एक बड़ी विशेषता है उसका 'उकारबहुला' होना। उकारबहुला भाषा का विधान नाट्यशास्त्र (ईसा के लगभग ) में निम्न जनपदों के 'समुपाश्रितों के लिये किया गया है- "हिमवसिन्धुसौवीरान्येः जनाः . समुपाश्रिताः । उकारबहुला तज्यस्तेषु भाषां प्रयोजयेत् ।" (नात्यशास्त्र १७३२) 'समुपाश्रिताः के आधार पर कहा जा सकता है कि इस "उकारबहुला' भाषा का उदय उक्त जनपदों के आगत-वासियों में हुआ। भरत मुनि के 'समुपाश्रिताः' एवं दंडी के 'आभीरादिगिरः' के परिशीलन से पता चलता है कि वास्तव में अपभ्रंश के निर्माण में विदेशियों का हाथ था। · नाट्यशास्त्र में कहीं अप- भ्रंश शब्द का प्रयोग नहीं मिलता पर उसके प्राकृत-पाठ के विधान में विभ्रष्ट' का उल्लेख है- "त्रिविधं तच्च विशे यं नास्ययोगे समासतः। समानशब्दं विभ्रष्टं देशीगतमथापि च ॥" (नाट्यशास्त्र १७३) प्रायः कह दिया जाता है कि 'समान शब्द', 'विभ्रष्ट और 'देशीगत' में क्रमशः 'तत्सम', 'तद्भव' तथा 'देश्य' का विधान पर हम इस निष्कर्ष से सहमत होने में असमर्थ हैं। हमारी समझ में सीधी बात यह है कि एक ओर आर्य अनार्यो को हटाते, उन्हें अपनाते, उनके देश में बसते तथा उनकी भूमि को अपनी बनाते जाते थे। उनके इस प्रयास से उनकी भाषा में जो देशगत विकार उत्पन्न हो जाते थे. उन्हीं को लक्ष्य करके -