पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/३६

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राष्ट्रभाषा की परंपरा देश-विवेचन में उसका प्रश्न नहीं उठ सकता। यदि उठ सकता है तो उसके तद्भव मानुषी रूप का, जो अवश्य ही प्राकृत था । संस्कृत के वाद प्राकृत की वाधा सामने आती है। अपभ्रंश न सही, शौरसेनी मागधी और पैशाची तो प्राकृत हैं। फिर इस प्राकृत का अर्थ क्या ? निवेदन है कि प्राकृत का सांकेतिक अर्थ है महाराष्ट्री। संस्कृत वैयाकरण महाराष्ट्री को ही प्राकृत के नाम से याद करते हैं। अस्तु, प्रकट है कि यहाँ प्राकृत, का अर्थ है महाराष्ट्री। संस्कृत को अलग कर देने से हमारे सामने महाराष्ट्री, मागधी, शौरसेनी, अपभ्रंश एवं पैशाची का प्रश्न रह जाता है। अतएव अब इनकी भी खोज करनी चाहिए। इनमें महाराष्ट्री, मागधी और शौरसेनी प्रत्यक्षतः महाराष्ट्र, मगध और शूरसेन से संबंध रखती हैं। उन्हीं देशों के नाम पर उनका नाम चला है। पर अपभ्रंश तथा पैशाची के विषय में यह नहीं कहा जा सकता। उनमें किसी देश का कोई निर्देश नहीं। पैशाची के संबंध में हमने व्यक्त कर दिया है कि वह उदीच्या की भापा है। शकादिकों के उदीच्यों में मिल जाने से जो भाषा निकल आई उसी का नाम पैशाची है। इसी पैशाची का कुछ संकेत भरत मुनि ने वाल्हीका के रूप में किया है और फलतः उसका विधान भी उदीच्यों के लिये कर दिया है। उदीच्या के अतिरिक्त भारत के जिन अन्य जनपदों या प्रांतों में पैशाची का प्रचार दिखाई देता है उसका प्रधान कारण है शकादिकों का प्रभुत्व और प्रभाव न कि उसका जन्मक्षेत्र। अस्तु,